रिपोर्ट- अनीस रजा
सितारगंज नगर पालिका क्षेत्र में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन और यूजर चार्ज वसूली के ठेके में निवर्तमान सभासदों ने व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाते हुए कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि ठेके की धनराशि को दोगुना कर नगर क्षेत्र की जनता पर बोझ डाला जा रहा है। उन्होंने दोगुने ठेके का विरोध कर आपत्ति जताते हुए अधिशासी अधिकारी को मांग पत्र सौंपा है।
बुधवार को नगर पालिका क्षेत्र के निवर्तमान सभासद रवि रस्तोगी, दीपक गुप्ता, ऋतु गहतोड़ी, रहमत हुसैन, उषा देवी, मजीदन बेगम, प्रमोद रावत, जहूर इस्लाम, सचिन गंगवार, कंचन चौहान, नूर बेग नगर पालिका की अधिशासी अधिकारी प्रियंका आर्य के पास पहुंचे। यहां उन्होंने पालिका की ईओ को बताया कि डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन और यूजर चार्ज वसूली कार्य का ठेका पोर्टल में 18 जनवरी के माध्यम से विज्ञप्ति के जरिए निकाला गया। जिसकी अंतिम अवधि 8 फरवरी है। उन्होंने कहा कि पूर्व में ठेका साढ़े 10 लाख का हुआ था, इस बार ठेके की धनराशि 20 लाख की जा रही है।
ठेके की धनराशि दोगुनी होने पर समस्त निवर्तमान सभासद इस पर आपत्ति जाता रहे हैं। उनका आरोप है कि ठेके की धनराशि दोगुनी करने के साथ ही ठेके की अवधि भी पांच गुना कर दी गई है। जिससे प्रतीत होता है कि जनता के सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने दोगुने ठेके से व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही समस्त निवर्तमान ने दोगुनी ठेके को निरस्त करने की मांग की है। उन्होंने अधिशाषि अधिकारी को बताया कि जब तक नए बोर्ड का गठन नहीं होता तब तक किसी प्रकार का ठेका न किया जाए।
पूर्व सभासदों ने नगर की जनता के साथ आंदोलन और धरना प्रदर्शन की चेतावनी दी
ऐसा होने पर पूर्व सभासदों ने नगर की जनता के साथ आंदोलन और धरना प्रदर्शन की चेतावनी दी है। निवर्तमान सभासद रवि रस्तोगी ने कहा कि ठेका व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने को लेकर किया जा रहा है। सीधे-सीधे यह जनता के पैसे का दुरुपयोग है जो काम पिछले ठेके में दस लाख रुपए में हो रहा था। वह अब 20 लाख रुपए में क्यों किया जा रहा है। अधिशासी अधिकारी सिर्फ हिटलर शाही दिखा रही हैं, जहां एक तरफ सितारगंज में सफाई कर्मचारियों की कमी है और उनके पद भी खाली हैं। लेकिन कर्मचारियों को न लगाकर वह नगर पालिका के पैसे का दुरुपयोग कर रही है। निवर्तमान सभासद पति पंकज गहतोड़ी ने कहा कि ठेके में गोलमाल है। इसीलिए ठेकेदार भी उत्तराखंड का और स्थानीय न होकर उत्तर प्रदेश का है। जिससे यह प्रतीत होता है कि अधिकारी अपने स्वयं के लाभ और ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए इतना महंगा ठेका कर रहे हैं।