Land Law : अब देशभर में जोर पकड़ रही है भू कानून की मांग

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नई दिल्ली. अब तक उत्तराखंड के नौजवान सोशल मीडिया पर मुहिम चला रहे थे लेकिन अब दिल्ली और देश के दूसरे इलाकों में रहने वाले उत्तराखंड के प्रवासी नागरिक भी इस कानून के प्रति लोगों को जागरूक करने में जुट गए हैं। ऐसी ही एक बानगी दिल्ली में भेटो पहाड़ नामक ग्रुप में दिखाई है। इस ग्रुप में देश विदेश में रहने वाले उत्तराखंड के लोग जुड़े हैं और इन्होंने रविवार को दिल्ली में मयूर विहार के पास प्ले कार्ड दिखाकर इस आंदोलन के प्रति लोगों को जागरूक किया और इससे आगे बढ़ने की रणनीति पर विचार विमर्श किया।

उत्तराखंड के प्रवासी नागरिकों की भू-कानून पर राय

भेटो पहाड़ ग्रुप की ये बैठक रविवार को मयूर विहार फेज-III के स्मृति वन पार्क में हुई। भेटो पहाड़ ग्रुप के एडमिन बी. सी. गौड़ की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में पलायन और भू-कानून पर गहन चर्चा हुई।

उत्तराखंड के प्रवासी नागरिकों की भू-कानून पर राय

ग्रुप के सदस्य प्रताप सिंह रावत ने ज़ोर देकर कहा कि नकदी फ़सल, जैसे फलों के पेड़, मेडिसिनल प्लांट्स, मशरुम जैसे प्लांटेशन उत्तराखंड के लोगों की आमदनी बढ़ाकर उनके जीवन स्तर में सुधार कर सकती है।

उत्तराखंड के प्रवासी नागरिकों की भू-कानून पर राय

ग्रुप के सदस्य सुनील पोखरियाल ने कहा कि आज हमारे बच्चे अगर पहाड़ों से नहीं जुड़े हैं तो इसके लिए हम ही ज़िम्मेदार हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि हम भले ही आधार कार्ड और अन्य डॉक्यूमेंट अपने वर्तमान पते पर ही करें लेकिन इलेक्शन कार्ड गांव के पते पर ही बनायें जिससे प्रदेश के प्रधान, विधायक आदि हमारी बात को तवज्जो दें और हम अपने गांव पट्टी के लिए कुछ सकारात्मक कर सकें।

उत्तराखंड के प्रवासी नागरिकों की भू-कानून पर राय

ग्रुप के सदस्य उमेश फुलेरा जी ने भू-कानून से पहले बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता पर जोर दिया वहीं उपासना सुंदरियाल ने बंजर कृषि भूमि के लिए बिखरे हुए खेतोँ को दोषी ठहराया और भू-कानून में चकबंदी व्यवस्था के प्रावधान पर भी जोर दिया।

भू कानून संगठन के दिल्ली संयोजक और भेटो पहाड़ ग्रुप के सदस्य दिनेश फुलारा ने बताया कि कैसे पिछले सालों में उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर भू-कानून के विषय में कदम उठाए। दिनेश फुलारा ने ये भी बताया कि किस प्रकार उन्होंने कोरोना काल में उत्तराखंड के लोगों की सहायता की।

ग्रुप के सदस्य मुकेश धस्माना ने इस बात पर जोर दिया कि हम क्यों नहीं आपस में कुमाऊनी या गढ़वाली में बात करते? यही मुख्य कारण हैं कि हमारी अगली पीड़ी अपनी भाषा बोलने में अयोग्य है। धस्माना ने कहा कि भाषा अपनी संस्कृति को जानने का एक प्रकार का प्रवेश द्वार होती है. संस्कृति से अपरिचित पीड़ी किस प्रकार भू से जुड़ेगी, इस पर विचार करना होगा.

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उन्होंने कहा कि आज की चर्चा के निष्कर्ष में यह बात मुख्य रही कि हमें इलेक्शन आई कार्ड गांव का ही बनाना चाहिए यदि हम चाहते हैं कि गांव के विकास के लिए हमारी बात को भी स्थानीय नेता पूरी गंभीरता से लें। बी. सी. गौड़ ने आगे भी इसी प्रकार जूम कॉल के माध्यम से भविष्य में उत्तराखंड के हित से जुड़े सभी विषयों पर चर्चा के लिए जोर दिया।

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