होलिका दहन का क्‍या है मुहूर्त,पूजा की विधि

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होली का दो दिवसीय ये त्‍योहार फाल्‍गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगो और आपसी भाईचारे का ये त्‍योहार पूरे देश में बडे ही उल्‍लास के साथ मनाया जाता है। इस बार ये त्‍योहार 28 और 29 मार्च को मनाया जाएगा। 28 मार्च को होलिका दहन और 29 मार्च को धुलेंडी मनायी जाएगी। बसंतपंचमी से शुरु होने वाले इस त्‍यौहार को कई राज्‍यों में रंग तेरस तक मनाया जाता है।

क्‍यों मनायी जाती है होली

पौराणिक कथा अनुसार राक्षस राज हिरण्‍यकश्‍यप स्‍वयं को भगवान मानता था। वो प्रजा से खुद की पूजा करवाता था किन्‍तु जब उसे प्रहलाद नाम के एक पुत्र की प्राप्ति हुई जो भगवान विष्‍णु का अन्‍नय भक्‍त था। ये बात उसके पिता हिरण्‍यकययप को पसंद नहीं थी। जिसके फलस्‍वरुप राजा ने प्रहलाद ने उसे कई यातनाएं दी और मारने का निरर्थक प्रयास किया। भगवान विष्‍णु की भक्ति में विश्‍वास रखने वाले प्रहलाद को उसके पिता को जब भी मारने का प्रयास किया गया तो वो हर बार बच गया। एक बार हिरण्‍यकश्‍यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को मारने के लिए कहा, जिसे ये वरदान था कि वो अगर आग में भी बैठ जाएगी तो जलेगी नहीं। होलिका ने ऐसा ही किया। लकडियों का एक गठ़ठर बनाया गया और अग्नि प्रज्‍वलित की गई और होलिका जो प्रहलाद की बुआ थी वो प्रहलाद को लेकर उस अग्नि में बैठ गई। पूरी आग जलने के बाद भी प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और प्रहलाद की बुआ होलिका भस्‍म हो गई। तब से ही होली मनाने की प्रथा आरम्‍भ हुई

होलिका दहन का मुहूर्त-

कहते है कि हर कार्य अगर शुभ मुहूर्त देखकर किया जाए तो परिणाम भी शुभ होता है। इस बार होली जलाने का मुहूर्त पंडि़तो के अनुसार शाम 6बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 56 मिनट तक है। पूजा के दौरान होलिका में अग्नि प्रज्‍जवलित करने के बाद उसकी परिक्रमा करने की भी मान्‍यता है। कई जगह ये भी मान्‍यता है कि होली पूरी तरह जलकर जिस दिशा में गिरती है तो पूरा साल भी उसी तरह गुजरता है। कई जगह पूरे साल का हिुदू वार्षिक पंचाग भी होली के बाद ही बनता है।

होलिका पूजन की विधि एवं साम्रगी-

आईए अब आपको बताते हैं कि आखिर होलिका की पूजा किस तरह की जाती है। होलिका की पूजा के लिए जल, कुमकुम, अक्षत, रोली, पुष्‍प, कच्‍चा सूत का धागा,गेहूं की बालियां मकई की धानी, चना मूंग की दाल सहित सात प्रकार के अनाज और बताशे गोबर उपले आदि सामग्री से होली की पूजन की जाती है। ध्‍यान रहे कि जब भी हो‍लिका माता की पूजा करें तो आपकी दिशा पूर्व या उत्‍तर दिशा हो। इन्‍हीं दो दिशाओं में बैठकर पूजा करें।

विभिन्‍न प्रकार की मान्‍यताएं

हमारे देश में एक मान्‍यता बड़ी प्रचलित है जिसमें कहा जाता है कि घाट घाट पर बदले पानी घाट घाट पर बोली। इसी कहावत की तर्ज पर हमारे देश में हर उत्‍सव की पूजा विधियां भी बदलती जाती हैं। जहां यूपी के कई इलाकों में बेसन और सरसों के तेल का उबटन बनाकर उससे नहा कर नावन मैल ले जा कर होली में डालती है। वहीं बिहार की तरफ गुनगुले, पुआ बनाए जाते है। हरे चने को और उपलों गोबर से माला बनाकर होली की आग में डालते है। घर की पुरानी झाडू को भी होलिका दहन में जलाने की परंपरा है। इस तरह की मान्‍यताओं को मानने का अर्थ है कि हमारे मन की बुराईयों के साथ साथ घर की दरिद्रता भी होली की अगिन में जलकर दूर हो जाती है


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