उत्तराखंड में फिर तेरी कहानी याद आई

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Author : अनुज श्रीवास्तव


उत्तरखंड की सियासत में हमेशा से ही भूचाल रहा है। हमेशा असंतोष के बुलबुले उठते रहे हैं, और सत्ता स्थिरता की मोहताज ही बनी रही। यही किस्सा फिर दोहराया गया जब 9 मार्च 2021 को त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने एक नाटकीय घटनाक्रम में अपना इस्तीफा दे दिया।
हर बार की तरह इस बार भी इस इस्तीफे की भूमिका में असंतोष की कहानी थी, नाकामी के संवाद थे और व्यक्तिगत आकांक्षाओं का ज़हर भरा था, इसके बाद आखिरी मुहर दिल्ली से लग गई। सरकार कांग्रेस की रही हो या बीजेपी की हर बार दिल्ली की चौखट से ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पर मुहर लगी और वहीं से उसे उखाड़ दिया गया।

उत्तराखंड के सियासी में एक मुख्यमंत्री को छोड़कर किसी भी मुख्यमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। मीडिया में सुर्खियों का केंद्र रहने वाले नारायण दत्त तिवारी इसी बहाने चर्चाओं में आ जाते हैं। एनडी उत्तराखंड के तीसरे मुख्यमंत्री रहे साथ ही वो इकलौते मंत्री रहे जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।
उत्तखंड के सियासी इतिहास में में झांककर देखें तो उत्तराखंड में बीजेपी का कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया।
2000 में उत्तराखंड बनने के बाद बीजेपी ने 2 साल में 2 सीएम बनाए, पहले नित्यानंद स्वामी को नए राज्य की कुर्सी पर बिठाया और उनके बाद भगत सिंह कोशियारी को कमान दे दी। नित्यानन्द स्वामी ने 9 नवंबर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक सीएम की कुर्सी संभाली। उनके बाद असंतोष और नाकामी की हवा चली तो कुर्सी भगत सिंह कोश्यारी के पास आई जिन्होंने 30 अक्टूबर 2001 से 1 मार्च 2002 तक शासन किया। बीजेपी का ये दांव सफल नहीं हुआ और 2002 में उत्तराखंड की जनता ने कांग्रेस को जनादेश देकर नारायण दत्त तिवारी को कुर्सी पर बिठा दिया। एनडी तिवारी पूरे पांच साल 2007 तक सीएम रहे, लेकिन वो कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं करवा सके। 2007 में फिर से बीजेपी को बहुमत मिला और 2007 से 2012 के बीच उत्तराखंड में बीजेपी ने 2 सीएम बदले, बी सी खंडूरी और रमेश पोखरियाल ‘निशंक’। मेजर जनरल (रिटायर्ड) भुवन चन्द्र खंडूड़ी 8 मार्च 2007 से 27 जून 2009 तक मुख्यमंत्री रहे। खंडूरी को हटाकर बीजेपी आलामान ने 27 जून 2009 को रमेश पोखरियाल निशंक को कुर्सी सौंपी लेकिन 11 सितंबर 2011 को उन्हें हटाया और फिर से भुवन चन्द्र खंडूरी को कुर्सी पर बिठा दिया। चुनावी साल में खंडूरी चमत्कार नहीं कर सके, 2012 में फिर बीजेपी की सरकार चली गई।
2012 में कांग्रेस को बहुमत तो मिला लेकिन पैराशूट से कूदे विजय बहुगुणा को सीएम बना दिया गया। बहुगुणा की नाकामी केदारनाथ त्रासदी के वक्त सामने आई और उन्हें 2014 में इस्तीफा देना पड़ा। आखिरकार फरवरी 2014 में पहाड़ के प्राकृतिक नेता हरीश रावत ने 2017 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली लेकिन वो भी दुबारा कांग्रेस की वापसी नहीं करवा सके। 2017 में फिर बीजेपी की सरकार बनी और त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने, इस बार भी यही हुआ
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके, और 4 साल पूरे होने से चंद दिन पहले ही बीजेपी आलाकमान ने उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बदल दिया। उत्तराखंड को बने 20 साल हो गए लेकिन एनडी तिवारी को छोड़कर कोई मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। विकास के सपनों को पूरा लिए संघर्ष करके बने इस राज्य को कुछ नहीं मिल पाया। न अफसर, न विकास और न ही स्थाई नेता।


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