चुनावी साल में खोखली नजर आती है ये घोषणा
त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने गुरुवार को प्रस्तावित राजधानी गैरसेंण को मंडल बनाने की घोषणा कर सभी को हैरान कर दिया। इस फैसले से भविष्य में गैरसेंण को या कहें समूचे पहाड़ को कितना लाभ होगा ये अभी दूर की बात है लेकिन सवाल ये है कि क्या ये फैसला सही है या गलत। क्या ये फैसला उत्तराखंड की जनता की अपेक्षाओं के अनुरुप लिया गया है। या कहीं ये गैरसेंण को राजधानी न बनाकर अगले साल होने वाले चुनावों से पहले एक चुनावी झुनझुना तो नहीं है। जिससे पहाड़ में लगातार बुलंद हो रही गैरसेंण राजधानी के संघर्ष की आवाज को कुछ समय के लिए और दबाया जा सके।
त्रिवेंद्र सरकार के फैसले के अनुसार गैरसेंण को अब कमिश्नरी या मंडल बना दिया गया है। इससे पहले उत्तराखंड में अब तक कुंमाउ और गढवाल दो मंडल थे। सरकार ने गैरसेंण को मंडल बनाकर एक और तीसरा मंडल बना दिया है। जिसके तहत चार जिलों को शामिल किया गया है। इसमें दो कुंमाउं के अल्मोड़ा और बागेश्वर शामिल हैं जबकि दो गढवाल के चमोली और रुद्रप्रयाग को शामिल किया गया है। इन चार जिलों को मिलाकर एक नया मंडल बनाया गया है। लेकिन अब सवाल ये है कि क्या सरकार के इस कदम को गैरसेंण को राजधानी बनाने की दिशा में पहला कदम माना जाए। या ये मान लिया जाए कि जैसे सरकार ने पिछली बार ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा करके राजधानी के मसले को कुछ और देर तक ठंडे बस्ते में डाल दिया था इस बार भी मंडल बनाकर फिर वही प्रयास किया है।
इस मसले को लेकर जाने माने पत्रकार,चिंतक और उत्तराखंड आंदोलन के सिपाही रहे चारू तिवारी का कहना है कि उत्तराखंड के लोगों का शुरु से ही ये मानना रहा है कि हमारे वहां छोटी प्रशासनिक ईकाईयां होनी चाहिए। जब हम राज्य आंदोलन चला रहे थे उस वक्त हमने 23 जिलों की मांग की थी। उनमें एक जिला गैरसेंण भी था। इसमें चार मंडलों की भी बात थी। लेकिन सरकारें जब अपने हितों के लिए काम करते हैं तो दिक्कतें आती हैं। गैरसेंण को मंडल बनाने का फैसला बड़े अजीब किस्म का है। इससे पहले सरकार चार जिलों की घोषणा दो बार कर चुकी है जिसमें डीडीहाट, रानीखेत, कोटदार, यमुनोत्री शामिल हैं। दरअसल पहाड़ में चार मंडलों की जरूरत हैं जिसमें पहला नैनीताल दूसरा अल्मोड़ा तीसरा पौड़ी और चौथा देहरादून। उत्तराखंड में छोटी प्रशासनिक ईकाईयों की जरूरत है जिससे यहां का सही विकास हो सके।
वहीं उत्तराखंड आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने वाले और अभी यूकेडी के सदस्य रणजीत सिंह गणकोटी का कहना है कि ये बिल्कुल उत्तराखंड के लोगों के साथ जुमला है।
सरकार लोगों को ठग रही है। सरकार गैरसेंण को कभी ग्रीष्मकालीन राजधानी बना रहे हैं,ऐसा धोखा आप जनता के साथ कब तक करेंगें। ये सरकार का एक चुनावी झुनझुना है और पहाड़ के लोगों के साथ धोखा है।
पिथौरागढ़ में रहने वाले समाज सेवी बी डी कसनियाल कहना है कि उनकी सबसे बड़ी चिंता ये है कि जिस सरकार को पहांड़ के विकास, युवाओं के पलायन और गांवों को अपने पैरों पर खड़ा करना है। सरकार प्रशासनिक ईकाईयां खोल देती है लेकिन इसका कोई बड़ा फायदा नहीं होता है। सरकार की इस तरह के कदम उठाकर लोगों को बहकाने की ये कोशिश गलत है। गैरसेंण को कमिश्नरी बनाने के फैसले से राज्य के विकास में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सरकार को अगर गैरसेंण के आसपास के दर्जन भर से ज्यादा गांवों के विकास का पैकेज देना चाहिए था। जिससे उन गांवों का विकास हो सकेगा। इस फैसले से गैरसेंण में एक प्रशासनिक टीम बैठेगी जो जिसकी तनख्वाह पर भी एक मोटी राशि खर्च होगी। मेरे अनुसार ये एक अच्छा कदम नहीं है।
वहीं हल्दानी में लंबे समय से सामाजिक हितों के लिए काम कर रहे पत्रकार ओपी पांडे का कहना है कि छोटी प्रशासनिक ईकाई होनी चाहिए। लेकिन ये कितनी प्रभावी होंगी ये देखने वाली बात होगी। गैरसेंण अभी जिला नहीं बना है। 2022 चुनावी साल है हमें तो ये घोषणा हवा लग रही है। सरकार ने पहले ग्रीष्मकालीन राजधानी का शिगूफा दिया और अब उसके बाद ये मंडल बना दिया। सरकार ने ये कदम विपक्ष के गैरसेंण को स्थायी राजधानी बनाने के दबाव के बीच सरकार ने ये फैसला लिया है।
दरअसल उत्तराखंड में आखिरी बार 1997 में इससे पहले आखिरी बार तीन जिलों की घोषणा की गई थी। जिसमें बागेश्वर, चंपावत और रूद्रप्रयाग को जिला बनाया गया था। इसके बाद राज्य में कई और जिलों की जरूरत तो महसूस की गई लेकिन सरकार की ओर से कोई नया जिला नहीं बनाया गया। इससे पहले मायावती सरकार में 1995 में ऊधम सिंह नगर को ही जिला बनाया गया था। छोटी प्रशासनिक ईकाईयों की जरूरत तो हमेशा से ही महसूस होती रही लेकिन राज्य बनने के बाद किसी भी सरकार ने कोई नये जिले का गठन नहीं किया।
अब सवाल ये है कि क्या गैरसेंण को मंडल बनाने से पहाड़ का विकास किया जा सकेगा। कई लोगों का ये भी मानना है कि गैरसेंण को मंडल बनाने से बेहतर होता कि अल्मोड़ को कुंमाऊ के चार जिलों के साथ मिलाकर जिसमें अल्मोड़ा, पिथौरागढ, बागेश्वर और चंपावत को शामिल कर एक मंडल बनाया जाता तो शायद वो बेहतर होता। वहीं गैरसेंण में भी चार जिलो चमोली, रूद्रप्रयाग, टिहरी और उत्तरकाशी को मिलाकर एक मंडल बनाया जाता तो शायद और बेहतर होता। इससे जहां कुमाऊं और गढवाल की संस्कृति को नया आयाम मिलता वहीं विकास भी बेहतर होता। लेकिन सरकार के इस प्रयास से किसी को भी कुछ लाभ होता नहीं दिख रहा है। अब देखना ये होगा कि आने वाले समय में गैरसेंण राजधानी का सपना देख रहे पहाड़ के लोगों त्रिवेंद्र सरकार के इस फैसले से कुड हासिल होता है या नहीं।