वत्‍स बारस की पूजा कैसे करें, जानें पूजा विधि और सबकुछ

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हमारे हिंदु धर्म में हर दिन हर महीने कोई न कोई त्‍योहार होता है और हर दिन किसी न किसी को समर्पित होता है हमारे भारतवर्ष में प्रकति पशु पक्षी सभी को माना और पूजा जाता है और हमारी इन्‍हीं मान्‍यताओं के पीछे कोई न कोई संदेश छूपा होता है। इसी श्रंखला में हर साल जन्‍माष्‍टमी के चार दिन के बाद द़वादशी तिथि को वत्‍स बारस या बछबारस का त्‍योहार मनाया जाता है कई जगह इसे गौ द़वादशी के नाम से भी जाना जाता है

इस वर्ष ये पर्व कई स्‍थानों पर तीन सितंबर और कई स्‍थानों पर चार सितंबर को मनाया जाएगा। संतान की रक्षा हेतु और संतान दीर्घायु हो उस कामना सें मातांए इस व्रत को रखती है। इस दिन गाय और बछड़े की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है हिंदु धर्म में गााय को माता के रुप में पूजा जाता है और कहा जाता है गाय में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास होता है घर में पहली रोटी भी गाय के लिए निकाली जाती है। इस दिन गाय माता के दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और यज्ञ करने जितना पूण्‍य मिलता है।

पूजा का शुभ मुहुर्त– वैसे तो कहा जाता है वार से बड़ा त्‍योहार होता है लेकिन द़वादशी के पूरे दिन ही शुभ मुहुर्त है और आप पंचाग मे चोघडि़या देखकर पूजा कर सकते है। देखकर

पूजा विधि-प्रात काल जल्‍दी उठकर नहाकर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र पहन कर पूजा की थाली तैयार करें कुमकुम, रोली, जल, बेसन से बनी कोई मिठाई,मकई यानि मक्‍के का आटा या बाजरे का आटा या इन दोनों के आटे से बनी रोटियां और अंकुरित अनाज जैसे साबूत मूंग, पूष्‍प माला आदि साम्रगी अपनी पूजा की थाली में सजाएं। आपके घर में यदि गाय है तो ये सोने पर सुहागा है और नहीं भी है तो आप जहां गाय और बछड़ा जहां है वहां जाकर सबसे पहले गाय और बछड़े को जल से स्‍नान करवाएं फिर उन्‍हें फूलों से सजाएं उनके सींग को भी फूलों से अच्‍छे से सजांए और अब जो सामग्री आप लाएं है उनसे उनकी पूजा करें गाय और बछड़े को अंकुरित अनाज और मक्‍क्‍ी बाजरे की रोटियां या बेसन से बनी कोई चीज खिलाएं। बाजरे या मक्‍के के आटे का ही टीका लगाया जाता है।

क्‍या खाया जाए-

इस दिन गेंहु और चावल खाने की मनाही होती है और गाय का दूध और उससे बनी चीजों का उपयोग भी वर्जित माना गया है। ये भी कहा जाता है कि इस दिन चाकू छूरी चम्‍मच का उपयोग भी वर्जित माना जाता है

पूजा के बाद गाय माता और बछड़े को अच्‍छे से भोजन करावें हरा चारा घास खिलावें और प्रणाम करें। इसके बाद बाजरा या मकई के कुछ दाने हाथ में लेकर कथा सुने प्रसाद में चढ़ाया हुआ लड़डू अपने पुत्र को दें उन्‍ हें तिलक लगाए कई स्‍थानों पर माताएं अपने पुत्र को नारियल का गोला जिसे खोपरे का गोला भी बोला जाता है देती है माताएं इस दिन व्रत रखती है अप नी संतान को खिलाने के बाद और गोधुलि बेला से पहले भोजन कर लेती है यानि संध्‍या काल से पहले गाय माता जब अपने घर चर का वापस आ जाति है तब एक बार शाम के समय फिर से गाय माता की पूजा करती है।


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