Hartalika Teej 2021 : जानें, कब आ रही है इस बार हरतालिका तीज, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

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देहरादून. भाद्रपद मास शुक्‍ल पक्ष की तृतीया तिथि को सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्‍य और परिवार की सुख शांति के लिए और कुंवारी कन्‍याएं मनचाहा वर पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती है। ये सबसे कठिन व्रत माना जाता है। क्‍योंकि ये व्रत निर्जला किया जाता है। इस व्रत को राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, बिहार सहित कई उत्‍तर पूर्वी राज्‍यों में मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश, शिव और माता पार्वती की आराधना की जाती है।

पूजा विधि और सामग्री- इस व्रत को करने वाली महिलाएं उस दिन सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान कर पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं। महिलाएं संकल्‍प करें फिर अपने हाथों से बालु या रेत या मिटटी से शिव पार्वती और गणेश की मूर्ति बनाती है। एक चौकी लेकर उस पर लाल कपड़ा बिछाकर इन मुर्तियों को स्‍थापित कर पूजा आरम्‍भ करें। इस व्रत में प्रदोष काल में पूजा की जाती है। प्रदेाष काल सायंकाल में सूर्यास्‍त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्‍त के 45 मिनट बाद तक कहा जाता है। पूजा की थाली में कुमकुम, अक्षत, रोली जल, दूध, दही, पान, पूजा की सुपारी, फल, कंवड़ा, धतुरा, जनेउ और मिठाई रखी जाती है। साथ ही सभी सुहाग की वस्‍तुएं रखी जाती है। इसके बाद पूजा कर आरती करें और कथा पढ़े या किसी व्रतधारी से कथा का श्रवण भी किया जा सकता है।

पूजा का शुभ मुहूर्ततृतीया तिथि का आरम्‍भ 9 सितंबर सुबह 2.33 पर हो जाएगा और तृतीया तिथि की समाप्ति 10 सितंबर दोपहर 12.18 मिनट पर होगी। हरतालिका तीज इस बार 9 सितंबर2021 वार गुरुवार को पड़ रही है। पूजा का शुभ मुहुर्त सुबह 6.03 से सुबह8.33 तक है। उसके बाद प्रदोष काल मुहर्त शाम 6.33 बजकर रात 8.51 मिनट तक रहेगा।

इस व्रत को बहुत कठिन व्रत माना जाता है क्‍योंकि पूरा एक दिन बिना अन्‍़न और जल के रहा जाता है,दूसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है।

कहा जाता है इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति रुप मे पाने के लिए किया था। माता पार्वती ने कई वर्षो की तपस्‍या के बाद भोलेनाथ को पति रुप में पाया था। इस व्रत का नाम हरतालिका क्‍यों पड़ा इसके पीछे भी शास्‍त्रों में कहा गया है कि पार्वती के पिता महाराज दक्ष नें अपनी पुत्री पार्वती का विवाह श्री हरि विष्‍णु के साथ करना तय किया था लेकिन पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, जब उन्‍हें अपने पिता के विचार का पता चला तो वे बहुत दुखी होकर बैठी थी। तब ही उनकी प्रिय सखी वहां आई और उन्‍हें अपने साथ वन में लिवा ले गई। जिस दिन पार्वती अपनी सखी के साथ वन में गई वो दिन भाद्रपद मास की तृतीया तिथि ही थी। जैसा की नाम से विदित है हरतालिका यानि हरत आलि अपनी सखी द्वारा हरण कर वन में ले जाने के कारण ही इस व्रत का नाम हरतालिका पड़ा।


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