चुनाव से पहले मौलाना की टोपी बनी हरीश रावत के लिए आफत?

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(यह आर्टिकल वरिष्ठ टीवी पत्रकार दिनेश कांडपाल की फेसबुक वॉल से लिया गया है)

देहरादून. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत आजकल सोशल मीडिया पर अपने पहनावे को लेकर सफाई देते फिर रहे हैं, जिससे ये लगता है कि एक टोपी उन भारी पड़ गई है। हरीश रावत इस टोपी का असर कम करने की कोशिशों में बीजेपी के दूसरे नेताओं की टोपियां दिखा रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी और राजनाथ सिंह की टोपियों को इस तरह से प्रचारित रहे हैं मानो वो उन्हीं की राह पर चलकर ये टोपियां पहनते हों।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री के सफाई देने का अंदाज़ ऐसा है कि वो आक्रोशित भी दिख रहे हैं और मुआफी मांगने की मुद्रा में भी हैं। आखिर कांग्रेस के दिग्गज महासचिव इतने विचलित क्यों हैं? बड़े-बड़े नेताओं को ठिकाने लगाने का कौशल रखने वाले हरीश रावत की परेशानी क्या है?

क्यों देनी पड़ी हरीश रावत को सफाई ?

उत्तराखंड में चुनाव नजदीक आ रहे हैं, और हरीश रावत एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के सीएम उम्मीदवार हैं। कांग्रेस को उत्तराखंड में अपने लिए उम्मीद दिख रही है, और उन उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं बीजेपी हाईकमान की लूली लंगड़ी नीतियों ने। चार साल में तीन-तीन मुख्यमंत्री देखने वाले उत्तराखंड के लोगों का एक बड़ाlतबका तो केवल इस बात से नाराज है कि बीजेपी हाईकमान ने राज्य की ऐसी गत क्यों बनाकर रख दी है। दूसरे मुद्दे भी हैं जिनकी वजह है प्रदेश की जनता बीजेपी की वर्तमान सरकार से नाराज है, और इसी नाराजगी को कांग्रेस भुनाना चाहती है। अब कांग्रेस के सामने परेशानी ये है कि राष्ट्रीय स्तर पर उसकी हालत तो पतली थी ही, ऊपर से हरीश रावत ने अपने कार्यकाल में कुछ ऐसे फैसले लिए जिसकी वजह से आज उत्तराखंड में भी उन्हें सफाई देनी पड़ रही है।


साल 2016 में ये खबर खूब चर्चाओं में रही कि हरीश रावत ने मुस्लिमों को जुम्मे की नमाज़ के लिए डेढ़ घंटे की खास छुट्टी देने का ऐलान किया और इसके लिए बाकायदा कैबिनेट में ये प्रस्ताव पास करवाया गया। इस फैसले के पीछे सर्वधर्म समभाव की दलील दी गई, लेकिन नीयत में खोट हो तो चोट हो ही जाती हैं, और हुआ भी यही। हरीश रावत के फैसले की इतनी तीखी आलोचना हुई कि कांग्रेस के कुछ प्रवक्ता तो इस सवाल का सामना करने से ही कन्नी काटने लगे। ये एक ऐसा फैसला था जो गले की फांस बन गया। बीजेपी ने बहुत होशियारी से इसे ध्रुवीकरण के तरकश में तीर की तरह रख लिया, और बार बार इसका इस्तेमाल भी किया। हरीश रावत का फैसला भले ही पांच साल पुराना हो लेकिन वो उनके पीछे भूतिया साए की तरह लग गया है। आज हरीश रावत को बीजेपी पर हमलावर होना चाहिए था, लेकिन कर्मों की गति देखिए की चुनावी अभियान की शुरुआत में ही वो सफाई देने लगे हैं।

आज तो हरीश रावत ये मानने के लिए ही तैयार नहीं हैं कि उन्होंने कभी जुम्मे की नमाज़ के लिए छुट्टी का ऐलान किया था। बीजेपी के नेता और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री-इन-वेटिंग अनिल बलूनी की फेसबुक पोस्ट का जवाब देते हुए हरीश रावत ने जो लिखा है उसे यथारूप में पढ़िए। कॉपी पेस्ट कर रहा हूं।

भाजपा का सफेद झूठ

(#भाजपा का सफेद झूठ। मैंने कभी भी जुम्मे की नमाज़ के लिए छुट्टी का ऐलान नहीं किया और न किसी ने मुझसे जुम्मे की नमाज़ के लिए छुट्टी मांगी। हां, #हरीशरावत ने सूर्य देव के आराधना के पर्व #छठ पर छुट्टी दी। हमारी बहने #करवाचौथ का व्रत रखती हैं, मैंने उस पर छुट्टी दी। मैंने दो महापुरुषों की जयंती पर छुट्टी दी, यहां तक की यदि भाजपाई झूठ न चल पड़ा होता है तो #परशुरामजयंती पर भी मैं छुट्टी करने के विषय में अपनी सहयोगियों से विमर्श कर रहा था। भाजपा के लोगों, #काठकी_हांडी एक ही बार चढ़ती है, 2017 में तुम्हारा यह झूठ चल गया। मगर अब के तुम समय पर सामने आ गये हो तो मेरे झूठ का प्रतिवाद भी लोगों तक पहुंचेगा और लोग पढ़े-लिखे हैं, स्वयं रिकॉर्ड तलाश कर लेंगे, क्या मेरी सरकार ने #जुम्मे की नमाज़ का जुम्मा मतलब शुक्रवार की नमाज़ के लिए छुट्टी का ऐलान किया है?-हरीश रावत)

साफ है कि हरीश रावत उस फैसले का दर्द महसूस कर रहे हैं, और बीजेपी उनके ज़ख्मों को कुरेद कर अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। दरअसल उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2001 की जनगणना में देवभूमि में मुसलमानों की आबादी कुल आबादी का 11 फीसदी थी, जो 2011 की जनगणना में 14 फीसदी हो गई है।

मैदानी इलाकों में मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ी

खासतौर पर हरिद्वार और मैदानी इलाकों में मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ी है और कई सीटों पर ये बहुत प्रभावी भी होने लगी है। हो सकता है कि हरीश रावत उस वक्त इन्हीं सीटों को टारगेट कर रहे हों लेकिन आज ये उनके गले की फांस बन गया है। जुम्मे की छुट्टी को लेकर उत्तराखंड सरकार के रिकॉर्ड क्या कहते हैं ये तो शोध का विषय है, लेकिन हवा तो बन ही गई कि हरीश रावत मौलानाओं के लिए ज्यादा उदार हैं, यही बात बीजेपी का हथियार बन गई है। हरीश रावत सफाई देते फिर रहे हैं, अनिल बलूनी से उनका सोशल मीडिया पर द्वंद चल रहा है, सवाल जवाब के तीर तरकश से छूट रहे हैं, और आरोपों का चक्रवात तेज़ होता जा रहा है। फिलहाल तो यही लग रहा है कि पंजाब जैसे राज्य में कांग्रेस पार्टी का झगड़ा सुलझाकर हाईकमान से उत्तराखंड का ईनाम लेने वाले हरीश रावत फिलहाल जितनी सफाई देंगे उतने ही गहरे इसमें धंसते चले जाएंगे।

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