उन्होंने मेरी आंखों की रोशनी छीन ली, पर हौसला नहीं छीन पाए, ये है एसिड अटैक सर्वाइवर कविता बिष्ट की कहानी
डी मैगज़ीन इंडिया की विशेष सीरीज़ नौ नवरात्र, नौ देवियां में आज प्रस्तुत है कविता बिष्ट की कहानी। अल्मोड़ा में रानीखेत की रहने वाली कविता ने अपने ऊपर हुए एसिड अटैक को ही अपनी ताकत बना लिया। हताश और निराश होने की बजाय पूरी दुनिया को वो जज़्बा दिखाया जिसकी मिसाल नहीं मिलतीं।
2008 में कविता के जीवन में भीषण तूफान आया
रानीखेत में हाईस्कूल की पढ़ाई करने के बाद कविता मजबूरी में नौकरी के लिए दिल्ली चली गईं। साल 2007 में दिल्ली-एनसीआर के टाउन नोएडा में कविता ने एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। ज़िंदगी पटरी पर आ ही रही थी कि साल 2008 में कविता के जीवन में भीषण तूफान आ गया। 2 फरवरी 2008 को दो लड़के बाइक पर सवार होकर आए।
कविता पर एसिड से अटैक
कविता उस वक्त दफ्तर जाने के लिए बस स्टैंड पर खड़ी थी। बाइक सवार एक लड़का बहुत दिनों से कविता को शादी के लिए परेशान कर रहा था। कविता ने जब उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया तो उसने कविता पर एसिड से अटैक कर दिया।
बेहोश कविता को आठवें दिन जब होश आया तो उन्होंने खुद को दिल्ली के एक अस्पताल में पाया। इलाज में हुई देरी ने कविता के चेहरे को बुरी तरह से खराब कर दिया था। कविता की दोनों आंखे, एक कान समेत पूरा चेहरा एसिड की चपेट में आ गए।
देहरादून में ब्लाइंड स्कूल में ली ट्रेनिंग
कविता की दोनों आंखों की रोशनी चली गई। नौकरी भी छूट गई इसलिए वापस गांव जाना पड़ा। गांव में कविता को भीषण मानसिक तनाव से जूझना पड़ा, उजियारे जीवन में अंधियारा छाता जा रहा था। तभी कविता को रोशनी की किरण दिखी और साल 2011 में उन्होंने देहरादून का रुख किया। देहरादून में ब्लाइंड स्कूल में ट्रेनिंग ली और हल्द्वानी आ गईं।
हल्द्वानी में कविता को कुछ मददगार मिले और उन्होंने डोनेशन से पैसा इकट्ठा करवाकर उनका चेहरा ठीक करवाया।
कविता के जीवन का एक और पहलू भी है। साल 2007 में उनकी एक बहन की मृत्यु हो गई, 2012 में दूसरी बहन ने भी प्राण त्याग दिए। उसके बाद सहारा बने पिता ने भी 2016 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। अब उनके परिवार में उनकी माता जी और एक भाई हैं। समाजसेवा से कविता का चेहरा ठीक हुआ उसी दिन उन्होंने प्रण किया कि वो भी अपना जीवन दूसरों की सेवा में लगा देगीं।
सरकार से जो मदद मिली उसे दूसरों मदद के लिए खर्च करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे ये सिलसिला चलता रहा और आज कविता करीब 30 बच्चों को पढ़ा चुकी हैं और दूसरे दिव्यागों की मदद कर रही हैं। साल 2020 से गरीब महिलाओं को सिलाई के साथ साथ दूसरे उद्यम सिखा रही हैं। इन महिलाओं से कोई फीस नहीं ली जाती साथ ही उनके बच्चों को कंप्यूटर की ट्रेनिंग भी दी जाती है।
साल 2014 में कविता को उत्तराखंड महिला पुरस्कार से सम्मानित किया गया
कविता के निश्वच को देखते हुए साल 2014 में उन्हे उत्तराखंड महिला पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी दौरान उन्हें नौकरी भी मिली लेकिन वो 2020 में रद्द हो गई। 2015 में एक साल के लिए कविता को उत्तराखंड का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया।
कविता अभी भी हर रोज़ नई नई चुनौतियों का सामना करती हैं लेकिन हर बाधा को वो दोगुने साहस के साथ पार करती हैं। कविता के इसी जज़़्बे को बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद भी सलाम कर चुके हैं। आज कविता ने पूरी दुनिया के सामने जो साहस का संबल रखा है वो अतुलनीय है और हमारे पूरे समाज के लिए मिसाल है।