नवरात्र में डी मैगज़ीन इंडिया की इस बेहद खास सीरीज़ में हमारी नौ देवियों में से एक देवी हैं यशवंती टम्टा। पिछले 6 सालों से अपने संसाधन जुटा कर ऐसी गायों की सेवा कर रही हैं जिन्हें लोग सड़कों पर छोड़ देते हैं। ये गाएं दूध नहीं दे पाती इसलिये लोग इनका पालन पोषण भी नहीं करते और उन्हें दर-दर की ठोकर खाने के लिए छोड़ देते हैं।
आपको ये जानकर हैरानी होगी की वर्तमान में करीब 26 गायों की गौशाला में महज एक लीटर दूध होता है उसके बावजूद यशवंती निस्वार्थ भाव से सेवा में लगी हें। गायों के प्रति उऩका लगाव ऐसा है कि उन्होने अपनी बैंक की नौकरी तक छोड़ दी, और गौशाला खोल ली। श्री नीब करौली महाराज मां गायत्री ट्रस्ट के अंतर्गत ये गौशाला अल्मोड़ा ज़िले में चौखुटिया के पास मासी में है।
अल्मोड़ा में पढ़ाई, शादी और ज़िम्मेदारियां
उनके पिता बालकृष्ण टम्टा की नौकरी कुछ ऐसी थी कि उनका कई जगह ट्रांसफर होता रहता था। पहले मुरादाबाद और फिर अल्मोड़ा से 12वीं की परीक्षा पास करते ही उनकी शादी करवा दी गई। ससुराल में भी यशंवती ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद बीएड किया। सब ठीक चल रहा था लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। कम उम्र में ही पति वीरेन्द्र प्रसाद टम्टा की मृत्यु हो गई और तीन बच्चों का भार यशवंती के कंधों पर आ गया।
वक्त ने यशवंती को और दुख देने थे, यशवंती के पति की मृत्यु के सदमे में सास ससुर की भी मृत्यु हो गई। अब पूरे घर को संभालना उन्हीं के ज़िम्मे आ गया। पति के कोटे की नौकरी तो मिली लेकिन छोटे बच्चों के साथ घर की ज़िम्मेदारी ने संघर्ष को अंतहीन बना दिया। यशवंती ने कभी हार नहीं मानी और कर्तव्य पथ पर चलती रहीं। आज यशवंती जी की दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है जबकि बेटा मर्चेंट नेवी में है।
चौखुटिया में नौकरी और गायों की सेवा
बैंक की नौकरी के दौरान ही यशवंती का ट्रांसफर चौखुटिया के पास मासी में हो गया। यहीं से उन्हें जीवन की नई राह मिली। मासी में यशवंती ने गायों की दुर्दशा देखी।
लोग दूध ना देने वाली गाय को भूखे मरने के लिए सड़कों पर छोड़ देते थे। कुछ गायो को उन्होंने खाना खिलाना तो शुरू किया लेकिन ,वो गायों पर होने वाले अत्याचारों को रोक नहीं पा रही थीं।
ये देखकर यशवंती को बहुत दुख हुआ और उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि अगर उन्हें घर की ज़िम्मेदारियों से राहत मिल जाए तो वो अपना पूरा जीवन गायों की सेवा में लगा देंगी। ईश्वर ने उनके मन की बात सुन ली। बेटे की नौकरी लगी तो यशवंती ने अपनी नौकरी से इस्तीफा देने का मन बना लिया। साल 2017 में बैंक की अच्छी खासी नौकरी से इस्तीफा दिया जिसे मंज़ूर होते होते एक साल का वक्त लग गया।
आखिरकार 2018 में यशवंती ने अपनी सारी पूंजी लगाकर गौशाला शुरू की जिसमें केवल उन गायों को रखा जाता है जो बेसहारा हैं। यशवंती चाहती तो दुधारु गायें भी रख सकती थीं लेकिन वो अपने संकल्प ने नहीं डिगीं। गौशाला के लिए खर्चे का संकट बार बार आया लेकिन हर बार कुछ ना कुछ करके गौशाला का संचालन जारी रखा।
लंपी वायरस की चुनौती का सामना
यशवंती के सामने बड़ा संकट तब आया जब लंपी वायरस से गायों की मौत होने लगी। उऩकी गौशाला में करीब 25 गायों की मौत हो गई। ये बहुत बड़ा दुख था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और बाकी बची गायों की सेवा करती रहीं। अब उनके पास 26 गायें हैं। आज भी उनके सामने चुनौती ये है कि गायें बीमार पड़ती जा रही हैं, लेकिन कोई स्थाई समाधान नहीं निकल पा रहा है।
हाल में ही उत्तराखंड सरकार ने यशवंती की गौशाला को अनुदान राशि की पहली किस्त दी है जिसकी वजह से अब वो थोड़ा निश्वचिंत हैं लेकिन ये राशि कब तक चलेगी कोई नहीं जानता। चारे के साथ साथ गायों की देखभाल करने वालों की संकट भी है, क्योंकि पलायन की वजह से यशवंती को कोई सहायक भी नहीं मिल पा रहा है। आज साठ साल की उम्र में 26 गायों का पालन पोषण कर रही यशवंती टम्टा पूरे समाज के लिए मिसाल बन गई हैं।