भारत देश की पहचान उसकी संस्कृति, धार्मिक विरासत से है. हमारे देश में धार्मिक स्थलों का संग्रह है. यहां के हर मंदिर में बड़ी श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है.हर मंदिर का धार्मिक औऱ एतिहासिक महत्व है. हर एक मंदिर से कोई ना कोई रहस्य जुड़ा हुआ है. मंदिरों के ये रहस्य भक्तों को अपनी और खींचते हैं. ऐसे ही मंदिरों में से एक है उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में. इस मंदिर को जागेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है. आइए जानें इसकी विशेषताओं औऱ रहस्यों के बारे में.
मंदिर की खास बातें
जागेश्वर धाम भगवान को समर्पित है. यह मंदिर भारत के ज्योर्तिलिंगों में से एक माना जाता है. इस मंदिर का 2500 वर्ष पूर्व इतिहास है. सनातन धर्म के लिंग पुराण, स्कंद पुराण औऱ शिव पुराण में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है. इस मंदिर के अंदर कई शिलालेख औऱ मूर्तियां मौजूद हैं. इस मंदिर में शंकर भगवान के नागेश स्वरुप की पूजा की जाती है. इस मंदिर के आस- पास ऊंचे -ऊंचे देवदार के पेड़ों का जंगल है.इसके पास में जाटगंगा नाम की नदी बहती है.
ये है रहस्य
देवदार के पेड़ों से घिरा यह मंदिर 100 छोटे- छोटे मंदिरों के समूहों से मिलकर बना है. काठगोदाम तक रेल से सफर करने के बाद आप स्थानीय गांड़ी से यहां पहुंच सकते हैं. जागेश्वर धाम अल्मोड़ा के बहुत करीब है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जागेश्वर धाम मंदिर में भगवान शिव और सप्त ऋषियों ने तपस्या की शुरुआत की थी. मान्यता है कि इस मंदिर से ही शिव लिंग की पूजा की जाने लगी थी. इस मंदिर को गौर से देखने पर पता चलता है कि इसकी बनावट बिल्कुल केदारनाथ के जैसी है. इस मंदिर के अंदर करीब 124 छोटे मंदिर हैं जहां पूजा की जाती है.
इन देवताओं की पूजा होती है.
जागेश्वर धाम में मुख्य तौर पर भगवान शिव, विष्णु, देवी शक्ति और सूर्य देवता की पूजा की जाती है. होती है.रोचक बात ये है कि जागेश्वर धाम के अंदर के मंदिरों के भी अलग-अलग नाम हैं. जैसे- दंडेश्वर मंदिर, चंडी-का-मंदिर, जागेश्वर मंदिर, कुबेर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, नंदा देवी या नौ दुर्गा, नवग्रह मंदिर और सूर्य मंदिर यहां के प्रमुख मंदिर हैं. पुष्टि माता और भैरव देवता की भी यहां पूजा की जाती है.