सोशल मीडिया पर छाए वैज्ञानिक दंपती, बताया कैसे मिला चंद्रयान-3 की टीम का हिस्सा बनने का मौका

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धर्मनगरी के धीरवाली निवासी नमन और उनकी वैज्ञानिक पत्नी एकता का भी चंद्रयान-3 में अहम योगदान रहा। जब यह सूचना फैली तो लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। बात सोशल मीडिया के जरिए बाहर आने लगी तो धीरवाली ही नहीं समूचे धर्मनगरी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।

सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों के स्थानीय कार्यकर्ता ने नमन की शिक्षिका मां गीतांजली से मिलने पहुंचने लगे। सुरक्षा कारणों के चलते मिशन के दौरान वैज्ञानिकों की जानकारी गोपनीय रखी गई। लेकिन सफलता का श्रेय परिवार अंत में नहीं छुपा सका

इसरो में वैज्ञानिक नमन चौहान और उनकी वैज्ञानिक पत्नी से अमर उजाला से खास बातचीत की। नमन और एकता ने मिशन के पूरा होने पर जहां देशवासियों को बधाई दी, वहीं उन्होंने बताया इस अभियान में उनका जितना योगदान है उसी तरह हजारों वैज्ञानिकों ने लाखों घंटे अपने परिश्रम से योगदान दिया। नमन बताते हैं कि इसरो में उनका जब सेलेक्शन हुआ तो उन्होंने इसे अपना सौभाग्य माना था। इस संस्थान में पत्नी एकता का भी साथ मिला और उन्होंने नित नए मुकाम हासिल किए।

केंद्रीय विद्यालय भेल से पढ़े नमन और बरेली के विद्या मंदिर की छात्रा रहीं एकता

इसरो में हजारों वैज्ञानिकों के साथ चंद्रयान को सफल बनाने में अपनी भूमिका निभाने वाले नमन ने बताया कि वह वर्ष 2007 में बीएचईएल यूनिट हरिद्वार में स्थित केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई किए। इंटरमीडिएट पास करने के बाद नमन बीटेेक के लिए लिए पंतनगर यूनिवर्सिटी चले गए। इलेक्ट्रानिक एंड कम्यूनिकेशन से उन्होंने इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री ली। इस बीच उन्होंने गेट परीक्षा भी उत्तीर्ण किया। पीसीएस में सेलेक्शन हुआ और औरंगाबाद, हैदराबाद आदि जगहों पर जूनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत रहे।

पढ़ाई के अनुरूप गेट परीक्षा में 198 रैंक हासिल किया। लेकिन इसी बीच इसरो में सेलेक्शन हो गया। बैंगलोर में इन दिनों वह इसरो में कार्यरत हैं। चंद्रयान मिशन 2 के समय नमन ने इसरो ज्वाइन किया, लेकिन तब तक टीम गठित हो चुकी थी। चंद्रयान 3 में काम करने का मौका मिला। सुरक्षा आदि कारणों के चलते अपने किए गये कार्य और विभाग से संबंधित जानकारी उन्होंने साझा नहीं की। लेकिन नमन बताते हैं कि तमाम सेवाओं का अवसर मिला जरूर लेकिन उनकी पढ़ाई के अनुरूप सेवा नहीं मिली तो कई क्षेत्र में अवसर को उन्होंने छोड़ दिया। एमटेक के बाद इसरो में चयन हुआ।

चंद्रयान तक की सफल मुहिम…

इसी तरह एकता बरेली निवासी मंडी समिति में सचिव पद पर कार्यरत प्रताप सिंह गंगवार की पुत्री एकता ने भी नमन से मिलते जुलते हालात में बीटेक और एमटेक के बाद इसरो को चुना। बरेली के कांति कपूर विद्या मंदिर से हाईसकूल और इंटरमीडिएट पास एकता ने एसआरएमएस कॉलेज से बीटेक किया। जयपुर के एमनएनआईटी से इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्यूनिकेशन से बीटेक के बाद एकता ने एमटेक में नमन की तरह की बीएलएफआई लिया। नमन का चयन इसरो में वर्ष 2016 में हो गया। एक साल बाद 2017 में एकता ने भी कामयाबी हासिल कर ली। एमटेक की पढ़ाई साथ में और इसरो में साथ-साथ सेवा का अवसर। दोनों ने परिणय सूत्र में बंधकर चंद्रयान तक की सफल मुहिम में काम किया।

बीटेक के दौरान नमन पर टूट पड़ था दुखों का पहाड़

नमन अपनी कामयाबी के पीछे स्व. पिता राकेश चौहान और माता गीतांजली के योगदान को श्रेय देते हैं। उनका कहना है कि वर्ष 2016 में बीएचईएल में कार्यरत पिता का देहांत हो गया। विद्या निकेतन स्कूल में प्रधानाचार्य माता गीतांजली ने उनके साहस को कम नहीं होने दिया। बीटेक की पढ़ाई के बाद नमन को पीसीएस अधिकारी के रूप में चयनित किया गया। कई अन्य सेवाओं में भी उन्हें अवसर मिला। लेकिन वह इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्यूनिकेशन की उपयोगिता केवल इसरो में होने के कारण उसे ही लक्ष्य बना लिया। साथ में पढ़ रही छात्रा एकता को भी वह समय-समय पर इसरो में जाने के लिए के लिए प्रेरित करते रहे। जिसका परिणाम रहा कि पीसीएस इंजीनियरिंग सेवा और बीएसएनएल में चयन के बावजूद एकता ने इसरो के लिए दिन-रात मेहनत शुरू कर दिया। इसरो में जहां दोनों को जीवनभर का साथ मिला वहीं विश्व भर में अपनी अलग पहचान कायम करने वाले मिशन चंद्रयान की सफलता का भी हिस्सा बने


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