Chaitra Navratri 2024 : चैत्र नवरात्र का हमारे धर्म में विशेष महत्व है. नवरात्रि के त्योहार में आदिशक्ति मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की उपासना की जाती है. आज से नवरात्र की शुरुआत हो रही है. पहला दिन में मां के शैलपुत्री अवतार की उपासना की जाती है. मां आदिशक्ति की उपासना करने के कई नियम और विधियां बताई गई हैं. ऐसी मान्यता है कि विधि-विधान से मां आदिशक्ति की पूजा करने से हमारे संकट दूर होते हैं और मां की विशेष कृपा भी बनी रहती है.
मां शैलपुत्री
ऐसी कथा है कि शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर में हुआ था. इसी कारण से उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. शैलपुत्री ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी. कठिन तपस्या के बाद भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें वरदान दिया था. मां के इस रूप को करुणा, धैर्य और स्नेह का प्रतीक माना गया है. मां शैलुपत्री की पूजा करने से हमारी परेशानियां दूर होती हैं. इसके साथ ही जो कन्याएं इनकी पूजा करती हैं उन्हें इच्छा के अनुसार पति मिलता है. उनका वैवाहिक जीवन भी सफल रहता है.
नवरात्रि में कलश स्थापना कब करें
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है. कलश स्थापना के लिए शुभ मुहर्त प्रात: काल में होता है. पहला शुभ मुहूर्त 9 अप्रैल, 2024 को सुबह 06:11 बजे से 10:23 बजे तक रहेगा.
दूसरा शुभ मुहूर्त 9 अप्रैल, 2024 को सुबह 11:57 बजे से 12:48 बजे तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा. ऐसा माना जाता है कि पहले दिन अभिजीत मुहूर्त में कलश की स्थापना करना बहुत शुभ होता है.
मां शैलपुत्री पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा शुरू करने से पहले अपने पूजा घर में कलश स्थापना कर लें.
उसके बाद भगवान गणेश की पूजा कर अखंड ज्योति जलाएं.
मां शैलपुत्री का पसंदीदा रंग सफेद रंग है. इसके अलावा नारंगी और लाल कलर का भी उपयोग पूजा के लिए कर सकते हैं.
अब षोडोपचार विधि से मां शैलुपत्री की पूजा करें. इस दौरान मां शैलपुत्री को कुमकुम, सफेद चंदन, सिंदूर, पान, हल्दी, अक्षत, सुपारी, लौंग, नारियल और 16 श्रृंगार का सामान अर्पित करें.
मां शैलपुत्री को सफेद रंग के फूल, सफेद मिठाई का भोग लगाएं.
उसके बाद मां शैलपुत्री के बीज मंत्रों का जाप करें और अंत में आरती करें.
शाम को भी मां शैलपुत्री की आरती करें और लोगों को प्रसाद दें.
मां को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का करें जाप
ओम देवी शैलपुत्र्यै नमः ह्रीं शिवायै नम: वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्.
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
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