क्या है तालिबान का कानून? महिलाओं को कोड़े और पत्थर क्यों मारते हैं तालिबानी?

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नई दिल्ली. तालिबान ने अब पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति अशरफ गनी विदेश भाग चुके हैं, काबुल में तालिबान की एंट्री हो चुकी है। सवाल वाजिब उठता है कि क्या अब अफगानिस्तान फिर से पुराने तालिबानी शासन की ओर जा रहा है? क्योंकि 20 साल पहले, अमेरिका के नेतृत्वब में जो दावा हुआ था कि अफगानिस्ताान से तालिबानी शासन का अंत हो गया है, वह अब दोबारा वापस आ गया है।

कौन है तालिबान

बात करें तालिबान की तो पश्तून में तालिबान का मतलब ‘छात्र’ होता है। यानी स्कूल से निकले हुए लड़के। 1980 के शुरुआती दिनों की बात है। अफगानिस्तान में सोवियत यूनियन की सेना की एंट्री हो चुकी थी। उसी के संरक्षण में अफगान सरकार चल रही थी। कई मुजाहिदीन समूह सेना और सरकार के विरोध में खड़े थे। इन मुजाहिदीनों को अमेरिका और पाकिस्तान से मदद मिलती थी। 1989 तक सोवियत यूनियन ने अपनी सेना वापस बुला ली। इसके खिलाफ लड़ने वाले लड़ाके अब आपस में ही लड़ने लगे। ऐसा ही एक लड़ाका मुल्ला मोहम्मद उमर था। उसने कुछ पश्तून युवाओं को साथ लेकर तालिबान आंदोलन शुरू किया।

अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उभार हुआ था। कहा जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी। तालिबान पर देववंदी विचारधारा का पूरा प्रभाव है। तालिबान को खड़ा करने के पीछे सऊदी अरब से आ रही आर्थिक मदद को जिम्मेदार माना गया था।शुरुआती तौर पर तालिबान ने ऐलान किया कि इस्लामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना उनका मकसद है। कई इलाकों में कबाइली लोगों ने इनका स्वागत किया लेकिन बाद में कट्टरता ने तालिबान की ये लोकप्रियता भी खत्म कर दी लेकिन तब तक तालिबान इतना पावरफुल हो चुका था कि उससे निजात पाने की लोगों की उम्मीद खत्म हो गई थी।

क्या है तालिबान के कानून

तालिबान के कब्जे के बाद लोगों में कई तरह की शंकाएं घर कर रही हैं। हाल ही में तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद सोहेल ने कहा था कि अफगानिस्तान में महिलाओं को काम करने से नहीं रोका जा रहा है, लेकिन उन्हें हिजाब पहनना पड़ेगा। वे कहते हैं कि हम महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ नहीं हैं। हमने ने हर बार अपना स्टैंड साफ किया है। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि महिलाएं हिजाब पहनें। अभी जो भी इलाके हमारे कंट्रोल में हैं, वहां पर लड़कियां स्कूल जा रही हैं, किसी को भी नहीं रोका गया है।

हालांकि पुराने तालिबानी नियम कानून को लेकर कई देश आशंकित हैं कि महिलाओं के अधिकार का हनन होगा जो बमुश्किल पटरी पर लौटा था। भले ही तालिबान ने कई बातें की हो लेकिन तालिबान के इतिहास के नियम कुछ और ही हकीकत बयां करते हैं। जिसे महिलाएं अकेले घर से बाहर नहीं निकल सकतीं। इनके साथ कोई ना कोई पुरुष साथी जरूर होना चाहिए। पुरुष का महिला से खून का संबंध होना चाहिए, यानी वो उसका पति, पिता, भाई या बेटा हो लेकिन किसी गैर पुरुष के साथ भी महिलाएं नहीं घूम सकतीं। इसके साथ ही उनके लिए बुर्का पहनना अनिवार्य होता है। जिसमें शरीर का कोई भी अंग दिखाई नहीं देना चाहिए।

तालिबानी नियमों के अनुसार, महिलाओं के वीडियो बनाने, फोटोग्राफी करने या फिर उनकी तस्वीरों को अखबार, किताबों या घरों पर नहीं लगाया जा सकता। इसके अलावा पुरुष अपने फोन में भी अपनी पत्नी की तस्वीर नहीं रख सकते। इसे तालिबान अपने नियमों के खिलाफ मानता है।

तालिबान शरिया कानून पर विश्वास करता है

तालिबान शरिया कानून पर विश्वास करता है। जहां-जहां तालिबान का कब्जा होता गया वहां फिर वही शरिया कानून, कोड़े मारने की सजा, सड़कों पर कत्लेआम और दाढ़ी बढ़ाने, संगीत सुनने, महिलाओं पर पाबंदियों जैसे मध्ययुगीन फरमानों का दौर लौटता गया है। पूरे देश पर अब फिर तालिबान का कब्जा है और लोगों में खौफ का आलम ये है कि घर-बार छोड़कर पड़ोसी मुल्कों में भागने को मजबूर हैं।

तालिबान के कानूनों के उल्लंघन करने पर महिलाओं को मारे जाते थे कोड़े

शिक्षा चाहने वाली महिलाओं को भूमिगत स्कूलों में जाने के लिए मजबूर किया जाता था।, उन्हें पुरुष डॉक्टरों द्वारा इलाज की अनुमति नहीं थी, उन्हें तालिबान के कानूनों के उल्लंघन के लिए सार्वजनिक कोड़े मारने और फांसी का सामना करना पड़ता था।तालिबान ने अनुमति दी और कुछ मामलों में 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के लिए शादी को प्रोत्साहित किया। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बताया कि 80% अफगान विवाह जबरन किए गए थे।

महिलाओं कोड़े मारते हुए तालिबानी

आठ साल की उम्र से, अफगानिस्तान में लड़कियों को एक करीबी “रक्त संबंधी”, पति या ससुराल के अलावा अन्य पुरुषों के साथ सीधे संपर्क में रहने की अनुमति नहीं थी ।

महिलाओं के लिए अन्य प्रतिबंध

महिलाओं को बिना खून के रिश्तेदार या बुर्का पहने सड़कों पर नहीं उतरना चाहिए। महिलाओं को ऊंची एड़ी के जूते नहीं पहनने चाहिए क्योंकि कोई भी पुरुष किसी महिला के कदम नहीं सुनेगा, ऐसा न हो कि वह उत्तेजित हो जाए। महिलाओं को सार्वजनिक रूप से जोर से नहीं बोलना चाहिए क्योंकि किसी अजनबी को महिला की आवाज नहीं सुननी चाहिए। महिलाओं को सड़क से दिखाई देने से रोकने के लिए सभी जमीन और पहली मंजिल की आवासीय खिड़कियों को पेंट या स्क्रीन किया जाना चाहिए।
किसी भी स्थान के नाम का संशोधन जिसमें “महिला” शब्द शामिल है। उदाहरण के लिए, “महिला उद्यान” का नाम बदलकर “वसंत उद्यान” कर दिया गया। महिलाओं को अपने अपार्टमेंट या घरों की बालकनी पर आने की मनाही थी। रेडियो, टेलीविजन या किसी भी प्रकार के सार्वजनिक समारोहों में महिलाओं की उपस्थिति पर प्रतिबंध।

सार्वजनिक आचरण के संबंध में तालिबान के फैसलों ने एक महिला की आवाजाही की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगा दिए और उन लोगों के लिए मुश्किलें पैदा कर दीं जो बुर्का नहीं खरीद सकते थे या जिनके पास कोई महरम नहीं था। इन महिलाओं को वर्चुअल हाउस अरेस्ट का सामना करना पड़ा। एक महिला जिसे तालिबान ने अकेले सड़कों पर चलने के लिए बुरी तरह पीटा था, ने कहा “मेरे पिता युद्ध में मारे गए थे … मेरा कोई पति नहीं है, कोई भाई नहीं है, कोई बेटा नहीं है। अगर मैं अकेले बाहर नहीं जा सकती तो मैं कैसे रहूंगी? “

तालिबान के कब्जे के साथ ही काबुल में अफरातफरी मच गई है। लोग शहर छोड़कर भाग रहे हैं। 20 साल बाद सत्ता में लौटे तालिबान को लेकर लोगों में खौफ क्यों है. बात 1998 की है जब तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर देश पर शासन शुरू किया तो कई फरमान जारी किए।पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया गया और न मानने वालों को सरेआम सजा देना शुरू किया। विरोधी लोगों को चौराहों पर लटकाया जाने लगा। हत्या और यौन अपराधों से जुड़े मामलों में आरोपियों की सड़क पर हत्या की जाने लगी। चोरी करने के आरोप में पकड़े गए लोगों के शरीर के अंग काटना, लोगों को कोड़े मारने जैसे नजारे सड़कों पर आम हो गए।


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