सैम बहादुर तो दिलों पर छा गए, फिल्म कितनी हिट होगी?

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दिनेश काण्डपाल
कसी हुई कहानी, विक्की कौशल का उत्कृष्ट अभिनय और बेहतरीन निर्देशन ने हिंदी सिनेमा को फौज और राजनीति से जुड़ी बेहतरीन फिल्म दे दी है। ये फिल्म सैम मॉनिकशा की दिलेरी, नेतृत्व क्षमता और दिलफेंक किस्सों को तो बयान करती ही है, फौज और राजनीति के बीच की लाइन को भी साफ कर देती है। पहली बार किसी फिल्म में आज़ाद भारत से पहले और उसके बाद फौज के अंदर बदलाव और राजनीति को दिखाया है।
फिल्म की कहानी सैम मॉनिकशा के एनडीए के दिनों में अनुशासनहीनता के एक किस्से से शुरू होती है जो कुछ ही पलों में वर्मा में उनकी जांबाज़ी तक जा पहुंचती है। कहानी वहां भी ले जाती है जब आज़ादी से पहले याहिया खान और सैम मॉनिकशा अच्छे दोस्त हुआ करते थे। कैसे फौज बंटी और कैसे भारत पर पहला हमला हुआ इसके तकनीकी पक्षों को भी अच्छे से उभारा है। बीच-बीच में दिलकश रोमांस के साथ उनकी शादी शुदा ज़िंदगी को भी बढ़िया ढंग से पिरोया है।
सैम के साथ तत्कालीन जनरल कौल की आपसी रंजिश और भारत-चीन युद्ध के दौरान जवाहरलाल नेहरू की बेबसी पर चोट करने वाली शायद ये पहली फिल्म है। बहुत बारीकी से ये दिखाया है कि कैसे इंदिरा गांधी ने सैम मॉनिकशा की क्षमता को पहचाना और उन्हें 1971 के बड़े ऑपरेशन के लिए तैयार किया।
पहले राज़ी, फिर उरी द सर्जिकल स्ट्राइक, विक्की कौशल ने फौजी वर्दी के साथ हमेशा ही न्याय किया है। सैम बहादुर में तो उन्होंने अपने अभिनय कौशल के झंडे ही गाड़ दिये हैं। सैम मॉनिकशा को हमारी पीढ़ी ने तो ज्यादातर यू ट्यूब या टीवी पर ही देखा है, लेकिन जो लोग उनसे जीवन में कभी मिले है वो बता सकते हैं कि विक्की ने सैम बनने के लिए कितना पसीना बहाया है। बोलने का हूबहू अंदाज़, थोड़ा आगे को झुकी हुई बॉडी और मूंछें। जो कुछ भी मॉनिकशा की पहचान रही वो विक्की ने खुद में उतार ली है। पूरी फिल्म को विक्की ने अपने दम पर खींचा, लेकिन सानया मल्होत्रा और फातिमा सना शेख का ज़िक्र किए बिना बात पूरी नहीं हो सकती। दोनों ने अपने किरदार के लिए जमकर मेहनत की है। जीशान अयूब मंझे हुए कलाकार हैं, लेकिन उनका मेकअप आर्टिस्ट थोड़ा और मेहनत कर सकता था।
मेघना, भवानी अय्यर और शांतनु श्रीवास्तव ने पूरी रिसर्च के साथ स्क्रिप्ट लिखी है। फिल्म के डायलॉग्स हिट होने वाले हैं। मेघना गुलज़ार का निर्देशन कमाल का है, वॉर मूवीज़ में कुछ कुछ तकनीती पक्ष रह ही जाते हैं लेकिन यहां मेघना ने उस दौर को पर्दे पर उकेरने की पूरी कोशिश की है और ज्यादातर वो कामयाब रही हैं। गुलज़ार के बेहतरीन गीत बहुत दिनों बाद थिएटर में सुनने को मिले।
कुल मिलाकर मनोरंजन और रोमांच के साथ साथ ये फिल्म एक दौर का इतिहास भी बताती है, इसलिये देखना तो बनता है।


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