हल्द्वानी के एमबी इंटर कॉलेज में आयोजित ईजा बैणी महोत्सव में राज्य की महिला उद्यमियों और स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं ने हस्तशिल्प, हथकरघा, मिलट्स और स्थानीय उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई। नैनीताल समेत अन्य जिलों से करीब 40 स्वयं सहायता समूहों ने स्टॉल लगाकर उत्पाद बेचे। स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं विभिन्न उत्पाद तैयार कर खुद को आत्मनिर्भर बना रही हैं, वहीं कई महिला उद्यमी अपने हुनर से लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान कर रही हैं।
महोत्सव में जिला उद्योग केंद्र, यूआरएलएम (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन), रीब (ग्रामीण उद्यम वेग वृद्धि परियोजना) और आरबीआई (ग्रामीण व्यवसाय इनक्यूबेटर) के संयुक्त प्रयास से प्रदर्शनी लगाई गई। निर्मला फाउंडेशन, चेतना सहायता समूह हाथीखाल, अल्मोड़ा के ताम्र कारीगर और स्वयं समहायता समूह की महिलाओं ने हथकरघा, हस्तशिल्प, मूंज उत्पाद, ऐपण, ताम्र और मिट्टी के बर्तन, हेंडीक्राफ्ट, मोटा अनाज, दालें एवं मसाले, कुमाऊंनी रंगीला पिछोड़ा, दनकालीन, रिंगाल के उत्पाद, मुखौटे आदि का प्रदर्शन किया। प्रियंका ऐपण आर्ट, ऐपण आर्ट-राखी, समृद्धि ऐपण हेडीक्राफ्ट, जयदेव वूलन एवं महिला उत्थान समूह (भावना मेहरा), रामनगर ने ऊनी उत्पाद, चेली आर्ट्स नैनीताल ने इको फ्रेंडली उत्पाद, जीवन ज्योति पहनिया कलस्टर (अमरावती देवी) खटीमा ने मूंज घास की टोकरियों की प्रदर्शनी लगाई।
ईजा-बैंणी महोत्सव – फोटो
वहीं, द पहाड़ी स्टोर, बेटी ब्वारी शक्ति स्वायत्त सहकारिता अल्मोड़ा, ससबनी ग्राम्याहाट (नेहा शाह) मुक्तेश्वर, पदार्थ हेंडीक्राफ्ट (शिवांग वर्मा) अल्मोड़ा, निशा हेंडकढ़ाई देहरादून, एकांशिव हस्तकला हेंडपेंट हल्द्वानी-अल्मोड़ा, कलबी बाय आर्ट ट्री स्टूडियो (जायरा खान) अल्मोड़ा, बैणी क्रोसिया प्रोडक्ट पंगूट (नैनीताल), हिमाद्री हंस हैंडलूम, नैना देवी ग्रोथ सेंटर, गिरिजा बुटीक एवं महिला विकास संस्था तल्ली बमौरी, कैन सार्थक स्वयं सहायता समूह, निर्मला सोशल रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसायटी, सारा क्राफ्ट पौड़ी गढ़वाल, नुपुर क्रिएशन नवाबी रोड, हिल प्योर ऑर्गेनिक, हिमालय स्वायत्त सहकारिता, लक्ष्मी और प्रेरणा स्वयं सहायता समूह गोरापड़ाव, कालिका स्वयं सहायता समूह हल्दूपोखरा, पेम्पर्ड कैनवास, आपर्ण हैंडमेड (चेतना धवन, शिवांगी वर्मा) ने मिलट्स उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई।
इसके साथ ही धवन कंफेशनर, मां नंदा सुनंदा स्वयं सहायता समूह (लीला शाह), मेग्स ट्रेड्स एंड नीडल्स काठगोदाम, वैष्णवी स्वयं सहायता समूह कनियाली, भूवेदा हर्बल काशीपुर, चोकोबाउंस काशीपुर, बुआजी मशरुम रानीबाग ने अपने उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई। ताज कॉर्बेट ढिकुली, क्लब महेंद्रा कॉर्बेट रामनगर, आहना रिजॉर्ट और आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों ने मिलट्स उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई।
13 जिलों के 26 जीआई टैग उत्पादों की लगी प्रदर्शनी
मेले में एक जिला दो उत्पाद योजना के तहत राज्य के 13 जनपदों के 26 जीआई टैग उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गई। नैनीताल जिले से ऐपण कला और फल प्रसंस्करण, अल्मोड़ा से बाल मिठाई और हथकरघा सामग्री (उत्तराखंड ट्वीड), पिथौरागढ़ से वूलन कालीन और मुनस्यारी राजमा, चंपावत के लौह शिल्प और शहद, बागेश्वर से ताबा और कीवी, पौड़ी के लकड़ी फर्नीचर और हर्बल उत्पाद, रुद्रप्रयाग में निर्मित मंदिर स्मारिका और मंदिर प्रसाद, चमोली के हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट और गुलाब जल, टिहरी की नथ और पनीर, उत्तरकाशी के सेब और लाल चावल समेत सभी जनपदों के दो जीआई टैग उत्पादों की प्रदर्शनी लगी।
गरीब बच्चों और महिलाओं को रोजगार दे रही मीरा
मीरा यूथ डेवलपमेंट फाउंडेशन की मीरा कापड़ी ने महोत्सव में टेरीकोटा मिट्टी से बने बर्तन उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई। इन बर्तनों को पेंटिंग से सजाया गया है। मीरा गरीब बच्चों और महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ रही हैं। 2,000 से अधिक महिलाएं और बच्चे उनके स्वरोजगार से जुड़े हैं। उधर, बामणीय माता स्वयं सहायता समूह, कोटाबाग ने मिट्टी और पत्थर के पाउडर से नेचुरल ब्लैक कप की प्रदर्शनी लगाई।
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कुसुम की पेंटिंग देख लोग हुए अभिभूत
हस्तकला प्रदर्शनी में ललित कला अकादमी पुरस्कार (2022) से सम्मानित उत्तराखंड की पहली महिला आर्टिस्ट कुसुम पांडे ने पेंटिंग और प्रिंटिंग प्रदर्शनी लगाई। रंगगीत आर्ट्स सेंटर संचालित करने वाली कुसुम की पेंटिंग ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी पेंटिंग में पहाड़ी लोकजीवन और संस्कृति की झलक देखने को मिली।
ईजा-बैंणी महोत्सव –
बबीता ने बंजर जमीन को किया आबाद, गुलाब की खेती कर बनाया रोज वाटर
पिथौरागढ़ जिले के कनालीछीना ब्लॉक के पसमा गांव की बबीता सामंत ने अपनी बंजर जमीन को गुलाब की खेती से आबाद करते हुए स्वरोजगार की मिशाल पेश की है। गुलाब की खेती के जरिए वह हिमग्रेस ब्रांड का गुजाब जब तैयार कर रही हैं। उनके इस प्रयास ने गांव के अन्य ग्रामीण भी गुलाब की खेती कर रहे हैं। बबीता ने बताया कि गांव से पलायन करने के बजाए उन्होंने गुलाब की खेती के जरिए स्वरोजगार का रास्ता चुना। वह गुलाब से शहद और गुलाब जल जैसे हर्बल उत्पाद तैयार कर रही हैं। इससे उन्होंने नौ लोगों को रोजगार भी दिया है। उन्होंने बताया कि गुलाब के तेल का समर्थन मूल्य प्रति किलो साढ़े पांच लाख रुपये तक है। एक किलो तेल के लिए 40 से 50 क्विंटल तक फूलों की जरुरत होती है।
बर्ड हाउस बनाकर लोकल बर्ड को संरक्षित कर रहे अर्जुन
ईजा-बैणी महोत्सव में प्रदर्शनी लगाने वाले गंगुवाचौर, भटेलिया (मुक्तेश्वर) निवासी अर्जुन सिंह बिष्ट स्वरोजगार की मिशाल पेश कर रहे हैं। पाइन कॉर्न और लकड़ी से बर्ड और ट्री हाउस बनाकर अर्जुन लोकल बर्ड बचाने की मुहीम में भी जुटे हैं। अपने जतन और इनोवेटिव आइडिया के दम पर आज उनके बनाए उत्पादों की नैनीताल, पूणे, दिल्ली और देहरादून में भी अच्छी मांग है।
अर्जुन बताते हैं कि छह साल पहले प्राइवेट नौकरी छोड़कर जब उन्होंने बर्ड हाउस और ट्री हाउस बनाकर स्वरोजगार करना शुरु किया तब उन्हें लोगों का खास समर्थन नहीं मिल पाया, लेकिन सोशल मीडिया के कारण उनके उत्पाद को नई पहचान मिली। आज वह अपने साथ चार महिलाओं और सात पुरुषों को भी रोजगार दे रहे हैं। उन्होंने तीन साल पहले बारबेट हेंडक्राफ्ट नाम से अपनी संस्था को पंजीकृत किया है। वे आरबीआई (रूरल बिजनेस इंक्यूबेटर) से भी जुड़े हैं। अर्जुन का कहना है कि पारंपरिक मकान के स्थान पर कंक्रीट के मकान बनने से लोकल बर्ड विलुप्त होने की कगार पर है। बर्ड हाउस बनाकर वह पहाड़ी संस्कृति को बचाने के साथ ही लोकल चिड़ियाओं को भी संरक्षित कर रहे हैं। अर्जुन के बनाए ट्री हाउस 450 से 900 रुपये और बर्ड हाउस 300 से 700 रुपये कीमत में बिक रहे हैं। कुरियर के माध्यम से पूरे भारत में अर्जुन के हेंडीक्राफ्ट खरीदे जा रहे हैं।
ईजा-बैंणी महोत्सव –
सम्मान प्राप्त करने वाली महिलाएं
1- नीला मटियानी- उत्तराखंड रत्न स्व. शैलेश मटियानी की पत्नी नीला मटियानी (85) को सीएम ने विशेष सम्मान से नवाजा।
2- कमला नेगी (आयरन लेडी) रामगढ़, ओडाखान- 57 साल की कमला पिछले 18 साल से रामगढ़-मुक्तेश्वर मार्ग में टायर पंचर का काम कर रही हैं।
3- कुमारी कृति गुंसाई निवासी रामनगर- गोवा नेशनल गेम्स में पेंचक सिलाट प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता।
4- मीनाक्षी खाती, ग्राम छोई रामनगर- ऐपड़ गर्ल के नाम से मशहूर मिनाक्षी खाती को संस्कृति को संजोने का काम कर रही हैं।
5- श्रद्धा कांडपाल- प्रिंसिपल एजुकेटर एंड काउंसर श्रद्धा कांडपाल दिव्यांग बच्चों को कौशल प्रशिक्षण देने, पॉक्सो समेत न्यायायिक वादों में मदद करने के लिए सम्मानित किया गया।
6- हेमा परगाईं- रौशनी सोसायटी की हेमा परगाईं मानसिक दिव्यांग बच्चों का पुनर्वास केंद्र चलाने और दिव्यांग बच्चों के हित के लिए कार्य करने के लिए सम्मानित हुईं।
7- पूजा रावत, बेतालघाट- 2013 में बेतालघाट के अमेल गांव में डिजिटल कार्य की नींव रखी। घर घर जाकर बुजुर्ग एवं दिव्यांगजनों के आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंकिंग सेवा, आय, जाति और स्थायी प्रमाण पत्र आदि बनाए।
8- कमला अरोड़ा गुंजन, हल्द्वानी – वीरांगना संस्था की कमला अरोरा वंचित बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने, भीख रोको अभियान चलाने समेत समाजिक कार्यों के लिए सम्मानित हुईं।
9- निर्मला देवी, हल्द्वानी- नेशनल पैरा बैडमिंटन एवं लान बाल की खिलाड़ी और तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित निर्मला देवी सम्मानित हुईं।
10- मनोरमा देवी, अल्मोड़ा- अल्मोड़ा में मानसिक एवं शारीरिक रुप से कमजोर बच्चे के विकास के लिए 25 वर्षों से संस्थान का संचालन कर रही हैं। 96 बच्चों को शिक्षित कर रोजगार एवं सेवायोजन किया गया है।
11- कोमल अधिकारी, कोटाबाग
12- खष्टी राघव
ईजा-बैंणी महोत्सव –
भांग के पेड़ से हेल्थ प्रोडक्ट तैयार कर रहे मां-बेटे
पहाड़ों में भांग का इस्तेमाल नशे के लिए होता है लेकिन अल्मोड़ा सतराली ताकुला निवासी संगीता जोशी और उनके बेटे पवित्र जोशी भांग का इस्तेमाल हेल्थ प्रोडक्ट बनाने के लिए कर रहे हैं।
ईजा-बैणी महोत्सव में प्रदर्शनी लगाने पहुंची संगीता जोशी ने बताया कि भांग का सही इस्तेमाल किया जाए तो नशे के दुरुपयोग से बचा जा सकता है। इससे न्यूट्रिशन, प्रोटीन पाउडर, हेल्थ केयर, कपड़ा और परिधान और होमस्टे आदि भी बनाए जा सकते हैं। नशे में इस्तेमाल के बजाए भांग की खेती का सदुपयोग किया जाए तो ग्रामीणों की आय दोगुनी हो सकती है। संगीता जोशी ने बताया कि उनके बेटे पवित्र जोशी ने 2019 में कुमाऊं खंड एग्रो इनोवेशन एंड हॉस्पिटेलिटी नाम से कसारदेवी से स्टार्टअप शुरू किया था।
उनके उत्पाद अल्मोड़ा, मुक्तेश्वर, मुनस्यारी और देहरादून के शोरुम में बिक रहे हैं। विदेशों में टर्की, यूके, सिंगापुर तक उनके उत्पादों की डिमांड है। 2000 से अधिक किसानों को रोजगार देने के साथ ही नशा उन्मूलन भी किया जा रहा है। रोजगार प्राप्त कर रहे शंकर बोरा ने बताया कि भांग के डंठल से चीन और जापान की तर्ज पर भूकंपरोधी होमस्टे और आवास भी तैयार किए जाते हैं।