सिलक्यारा सुरंग में जहां एक दिन में हो जानी चाहिए थी ड्रिलिंग, वहां 15 दिन भी कम पड़े, आखिर क्या है अमेरिका की ऑगर मशीन

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Auger Machine Drilling Uttarakhand Tunnel: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की सिलक्यारा सुरंग में पिछले 15 दिनों से फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए अमेरिका की भारी भरकम ऑगर मशीन लगाई गई है. वैसे दावा किया जाता है कि यह मशीन एक बार में 50 मीटर तक ड्रिल कर सकती है, लेकिन उत्तराखंड की सुरंग में इसके सामने इस्पात की जाली और मजबूत कंक्रीट की ऐसी दीवार खड़ी हो गई है कि पिछले तीन दिनों में महज 2.20 घंटे ही मशीन चल पाई है. शुक्रवार (24 नवंबर) से आज रविवार (26 नवंबर) के बीच मशीन में लगातार खराबी आने और अब उसके ड्रिलिंग वाले हिस्से के टूट जाने की खबर सामने आ चुकी है.

ऐसे में बचाव अभियान लगभग ठप हो गया है और इस मशीन के विकल्प के तौर पर सेना के जवान मैन्युअल ड्रिलिंग के लिए बुला लिए गए हैं. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि यह भारी भरकम ऑगर मशीन क्या है और इसमें बार-बार खराबी क्यों आ रही है. 

वायु सेना की ट्रांसपोर्ट फ्लाइट से लाई गई थी मशीन
सिक्यारा टनल में अब जो ऑगर ड्रिलिंग मशीन काम कर रही है, वो अमेरिकी ऑगर मशीन है, जिसे वायुसेना के तीन ट्रांसपोर्ट फ्लाइट्स ने दिल्ली से एयरलिफ्ट करके देहरादून तक पहुंचा‌या था. ये मशीन 05 मीटर प्रति घंटे के हिसाब से टनल में जमा मलबे को ड्रिल कर सकती है. यानि 10 घंटे में 50 मीटर तक खुदाई कर लेगी. हालांकि सुरंग में इसकी क्षमता भी कमजोर पड़ रही है और पिछले 15 दिनों में महज 46.9 मीटर ड्रिलिंग हो पाई है.

कम जगह में ड्रिलिंग में सक्षम है मशीन
ये मशीन अत्यधिक क्षमता वाली बेहद खास तकनीक से बनी है जो कम जगह में भी आसानी से ड्रिलिंग करते हुए मलबे को बाहर निकाल सकती है. यह चट्टानों और मलबे में छेद करते हुए अंदर जाती है और इसके घुमावदार ब्लेड ऐसे बनाए गए हैं कि मलबे को वहां से बाहर भी निकालते हैं. 

ड्रिलिंग का नहीं होता है जमीन पर असर
भारी पावर के साथ यह मशीन सामने की ओर सीधे छेद करते हुए आगे बढ़ती है. इसके ड्रिलिंग इक्विपमेंट इतनी तेजी से काम करते हैं कि सामने के हिस्से को बिल्कुल आसानी से तोड़ते हुए आगे बढ़ते रहते हैं. इसलिए इसका असर ऊपरी जमीन पर बिल्कुल नहीं होता और सुरक्षित रहती है.

क्यों बार-बार खराब हो रही है मशीन
ऑगर मशीन में ड्रिलिंग के काम के लिए होरिजॉन्टल ड्रिलिंग टूल्स लगाए गए हैं. इसका 6 मीटर लंबा और 900 मिलीमीटर डायमीटर का स्टील पाइप सीधे सामने की तरफ टनल में छेद कर रहा है. अब जो सुरंग धंसी है उसमें बड़ी मात्रा में स्टील के स्ट्रक्चर भी हैं और लोहे की पाइप देकर जाली बनाई गई है. मशीन का सामने का हिस्सा केवल कंक्रीट को भेद सकता है, लेकिन सामने पड़े धातु को तोड़ने के लिए जैसे ही मशीन की ड्रिलिंग चलाई जाएगी, ये एक-दूसरे से रगड़ाते हुए या तो टूट जाएगी या मुड़ जाएगी. उत्तराखंड सुरंग में यही हो रहा है जिसकी वजह से यह मशीन भी कमजोर पड़ रही है.

अंडरग्राउंड स्कैनिंग टेक्नोलॉजी के जरिए बार-बार यह पता लगाने की कोशिश हो रही है कि ड्रिलिंग की राह में कोई धातु है या नहीं, लेकिन वहां से भी सटीक आंकड़ा नहीं मिल पा रहा. इसकी वजह से मशीन काम नहीं कर पा रही है. अब भारतीय सेना के जवानों की मैनुअल ड्रिलिंग पर यहां फंसे मजदूरों का भविष्य टिक गया है.

15 दिनों से जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं अंदर फंसे मजदूर
आपको बता दें की दिवाली के दिन सुरंग धंसने से इसमें 41 मजदूर फंसे हुए हैं. पिछले 15 दिनों से इन्हें निकालने के लिए युद्ध स्तर पर एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के जवान बचाव अभियान चला रहे हैं. गनीमत है कि सुरंग के अंदर बिजली की आपूर्ति और पानी की व्यवस्था है. इस बीच मौसम विभाग ने सोमवार को भारी बारिश के साथ बर्फबारी की चेतावनी दी है, जिससे बचाव अभियान में और समस्याएं आ सकती हैं.


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