हल्द्वानी. उत्तराखंड में भू-कानून की मांग जोर पकड़ चुकी है। हल्द्वानी में बुद्ध पार्क में रविवार को अलग-अलग शहरों के अलावा दिल्ली में रहने वाले कुछ उत्तराखंडी भी पहुंचे थे। वंदे मातरम गु्रप द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भू-कानून, इनर लाइन परमिट सिस्टम व मूल निवास 1950 आर्टिकल 371 को जल्द लागू करने की मांग की गई।
जननायक श्रीदेव सुमन की शहादत दिवस पर बुद्ध पार्क में एकजुट हुए युवाओं ने उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद नैनीताल रोड पर रैली निकाली हुंकार भरी। इस दौरान युवाओं ने सरकार व नेताओं पर तंज कसते हुए कहा कि पहाड़ पर जमीन बचेगी तभी लोग भी रहेंगे। अगर जमीन और जनता ही नहीं रही तो इन नेताओं का भविष्य भी खत्म हो जाएगा।
प्रदर्शनकारी विजेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि पहाड़ पर तेजी से जमीनों को बिक्री होने के कारण बाहरी लोगों का अतिक्रमण बढ़ रहा है। ऐसा न हो कि एक दिन कुछ बचे ही न। वहीं, प्रदर्शनकारी दीपिका नयाल ने कहा कि भू-कानून के साथ आर्टिकल 371 व इनर लाइन परमिट सिस्टम भी हर हाल में चाहिए। ताकि उत्तराखंडी खुद को सुरक्षित महसूस कर सके।
क्या है भू-कानून
साल 2000 में जब उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर अलग संस्कृति, बोली-भाषा होने के दम पर एक संपूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था। उस समय कई आंदोलनकारियों समेत प्रदेश के बुद्धिजीवियों को डर था कि प्रदेश की जमीन और संस्कृति भू माफियाओं के हाथ में न चली जाए।इसलिए सरकार से एक भू-कानून की मांग की गई।
वहीं, प्रदेश में बड़े स्तर पर हो रही कृषि भूमि की खरीद फरोख्त, अकृषि कार्यों और मुनाफाखोरी की शिकायतों पर साल 2002 में कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने संज्ञान लेते हुए साल 2003 में ‘उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950’ में कई बंदिशें लगाईं।इसके बाद किसी भी गैर-कृषक बाहरी व्यक्ति के लिए प्रदेश में जमीन खरीदने की सीमा 500 वर्ग मीटर हो गई।
इसके बाद साल 2007 में बीजेपी की सरकार आई और तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने अपने कार्यकाल में पूर्व में घोषित सीमा को आधा कर 250 वर्ग मीटर कर दिया।लेकिन यह सीमा शहरों में लागू नहीं होती थी। हालांकि, 2017 में जब दोबारा भाजपा सरकार आई तो इस अधिनियम में संशोधन करते हुए प्रावधान कर दिया गया कि अब औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमिधर स्वयं भूमि बेचे या फिर उससे कोई भूमि खरीदे तो इस भूमि को अकृषि करवाने के लिए अलग से कोई प्रक्रिया नहीं अपनानी होगी। औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदे जाते ही उसका भू उपयोग अपने आप बदल जाएगा और वह अकृषि या गैर कृषि हो जाएगा। इसी के साथ गैर कृषि व्यक्ति द्वारा खरीदी गई जमीन की सीमा को भी समाप्त कर दिया गया। अब कोई भी कहीं भी जमीन खरीद सकता था।
Uttarkashi Earthquake : उत्तराखंड के उत्तरकाशी में भूकंप के झटके किए गए महसूस
Uttarakhand Assembly Election: लौट के कांग्रेस हरीश रावत पर आई