शिक्षा निदेशालय की डिप्टी डायरेक्टर राजेश्वरी कापड़ी ,उत्तराखंड के सैकड़ों युवाओं के लिए बनी आदर्श

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डी मैगज़ीन इंडिया की विशेष पेशकश नौ नवरात्र नौ देवियां में आज पेश है राजेश्वरी कापड़ी की कहानी। राजेश्वरी कापड़ी वर्तमान में दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय में डिप्टी डायरेक्टर हैं। उन्होंने पिथौरागढ़ में अपनी पढ़ाई करते हुए ना केवल सरकार में उच्च पद प्राप्त किया बल्कि दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए भी वो उत्तराखंड के सरोकारों के लिए दिन रात कोशिश करती रहती हैं। राजेश्वरी जी आज उत्तराखंड के सैकड़ों युवाओं के लिए आदर्श हैं।


पिता का साया बचपन में ही सिर से उठ गया, लेकिन राजेश्वरी की मां ने उनके अंदर चुनौतियों से जूझने के संस्कार डाले। बचपन में बेहद शैतान राजेश्वरी प्रखर बुद्धि की छात्रा रहीं। खेती बाड़ी और घर परिवार की देख रेख के साथ साथ राजेश्वरी ने बचपन से ही अपनी नैसर्गिक प्रतिभा का कौशल बिखेरना शुरू कर दिया। परिवार का माहौल प्रोग्रेसिव था, स्कूल में गणित से ज़रूर भागती रहीं लेकिन उसके अलावा जिस विषय में पढ़ाई की उसमें अव्वल ही रहीं।


बहुमुखी प्रतिभा की धनी राजेश्वरी भाषण, निबंध, नृत्य हर जगह आगे रहती थीं। एनसीसी में अंडर ऑफिसर बनीं तो नेतृत्व का गुण सहज ही आ गया। इसी प्रतिभा की बदौलत राजेश्वरी ने यूपीएससी की परीक्षा पास की और दिल्ली आकर सीधे प्रिंसिपल बन गईं। राजेश्वरी के अंदर ऊर्जा का इतना बड़ा भंडार है कि पहली ही पोस्टिंग में उन्होंने अपने स्कूल में नए नए प्रयोग करने शुरू कर दिए। उनके इन प्रयगों का छात्रों को तो फायदा हुआ ही स्कूल कि छवि भी राज्य स्तर पर चमकने लगी। इसका नतीजा ये हुआ कि 12 साल में ही 6 स्कूलों में प्रिंसिपल बना दिया गया।

राजेश्वरी कापड़ी ने ही दिल्ली को पहला इंटरनेश्नल मॉडल स्कूल दिया। राजेश्वरी की प्रतिभा को सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों ने पहचाना और उन्हें एनसीआरटी की तरफ से स्कूलों में लेक्चर देने के लिए अधिकृत कर दिया गया। अब राजेश्वरी के पास शिक्षा में नए आयाम गढ़ने का मौका आ गया था। राजेश्वरी का शिक्षा के प्रति इतना समर्पण था कि उन्होने स्कूल क्लाइमेट पर ही पीएचडी कर ली।


ससुराल से आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिला।, खासतौर पर ससुर ने जी उन्हें प्रेरित किया। नौकरी की शुरुआत तो इतनी हैरान करने वाली थी कि प्राइमरी टीचर के लिए सलेक्शन नहीं हुआ। फिर कई जगहों पर नौकरी के लिए संघर्ष किया, साथ मे पढ़ाई भी जारी रखी।


घूमने का शौक था, जानवरों की देखभाल करती थीं, बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ नए नए प्रयोग किए। उत्तराखंड से इतना लगाव है कि ट्रेकिंग भी पराकाष्ठाएं छूने लगी। राजेश्वरकी ने मानसरोवर कैलाश के साथ साथ नंदा देवी जैसे दुर्गम ट्रैक भी कर डाले। देश के हर हिस्सें में गईं और जहां भी गईं वहां से कुछ सीखकर लौटीं। हमेशा मन में ये भाव ज़िंदा रहा कि उनका मूल पहाड़ में है।


आज बतौर शिक्षा निदेशक राजेश्वरी जी उपलब्धियों ने शिखर को छू रही हैं, लेकिन वो हमेशा बतौर शिक्षक जड़ों से जुड़े रहना चाहती हैं। वो इस भाव को गहराई से आत्मसात करती हैं कि शिक्षक राष्ट्र का निर्माण करता है इसलिए उसकी ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है। राजेश्वरी इस बात से दुखी अवश्य हैं कि नशे की चपेट में उत्तराखंड के कुछ युवा अपनी प्रतिभा का हनन कर रहे हैं लेकिन उनकी कोशिश और विश्वास है कि ये सभी सही रास्ते पर लौटेंगे। राजेश्वरी जी युवाओं के लिए कैरियर काउंसिलिंग की ज़रूरत महसूस करती हैं।


राजेश्वरी को उनकी मेहनत के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। स्टेट बेस्ट प्रिसिंपल के साथ साथ सीवी रमन पुरस्कार भी उनकी बड़ी उपलब्धियों में एक है। टेबल टेनिस की शौकीन राजेश्वरी का व्यक्तित्व इतना सहज है कि वो कई मौकों पर डांस से भी इनकार नहीं करती हैं।


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