देहरादून की धना वाल्दिया के जज्बे को सलाम ,अब तक 4 हजार महिलाओं को दे चुकी हैं रोजगार

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डी मैगज़ीन की विशेष प्रस्तुति नौ नवरात्र नौ देवियां में आज प्रस्तुत है देहरादून की रहने वाली समाजसेवी धना वाल्दिया की कहानी। धना की खासियत ये है कि इन्होंने आज तक 4 हज़ार महिलाओं को उनके पैरों पर खड़ा किया लेकिन बाहर से एक रुपए की मदद नहीं ली।

धना वाल्दिया

धना वाल्दिया का जन्म और शिक्षा दीक्षा उत्तराखंड के डीडीहाट में हुई।  पिताजी समाजसेवक थे, धना वाल्दिया के मन में भी समाजसेवा का अंकुर उन्हीं को देखकर प्रस्फुट्टित हुआ। शुरुआत में घना ने आर्मी पब्लिक स्कूल रानीखेत के साथ साथ साथ देहरादून के कई स्कूलों में पढ़ाया लेकिन बाद में वो पूरी तरह समाजसेवा के क्षेत्र में समर्पित हो गईं।


साल 2007 में धना वाल्दिया ने एक समिति के ज़रिये महिलाओं की समस्याओं को हल करना शुरू किया। धना वाल्दिया कई किलोमीटर चल कर गांव-गांव में जाती थीं और महिलाओं की स्थिति जानने की कोशिश करती थीं। घना ने ऐसी महिलाओं को चिन्हित किया जिन्हें कभी सरकारी योजना का कोई लाभ नहीं मिला। उन्होंने तय किया कि इन महिलाओं को स्वरोज़गार से जोड़कर उन्हें उनके पैरों पर खड़ा होने में मदद करेंगी।


धना वाल्दिया ने महिलाओं के लिए सिलाई कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर, अचार मुरब्बा बनाना और होली के रंग बनाने जैसे कोर्स शुरू किए। धीरे धीरे महिलाओं में भी इन कामों को लेकर रुचि पैदा होने लगी और कारवां बढ़ता चला गया।  


साल 2007 से लेकर आज तक घना 4 हज़ार से ज्यादा महिलाओं को ये हुनर सिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में कामयाब हो चुकी हैं। इस काम के लिए धना वाल्दिया ने कभी किसी से आर्थिक मदद नहीं ली। पति रिटायर्ड फौजी थे . इसलिये उनकी पेंशन से ही समाजसेवा का खर्च भी चलाया। घर में बहू, बेटा और एक पोती है। घना ने अपने परिजनों को प्रेरित किया कि वो अपनी कमाई का दसवां हिस्सा समाजसेवा के लिए समर्पित करें। घना की बात मानकर उनके परिवार ने आर्थिक सहायता शुरू की और उसकी बदौलत इतनी महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद मिली।


धना वाल्दिया को आज तक कोई आवॉर्ड नहीं मिला लेकिन उनका हौसला कम नहीं हुआ।  वो लगातार आज भी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने मे लगी हैं। घना का ये समर्पण भाव पूरे उत्तराखंड के लिए मिसाल बन गया है।  


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