नवरात्र के दौरान मातृशक्ति को समर्पित हमारी इस सीरीज़ में आज दूसरी महिला हैं रीना उनियाल। इनकी खासियत ये है कि लंपी वायरस के प्रकोप के दौरान जब देश में सैकड़ों गाएं मौत के मुंह में समा रही थीं, उस वक्त रीना ने दिन रात एक करके करीब 250 गायों को जीवनदान दिया।
रीना उनियाल का जन्म मसूरी में हुआ ।
एक फौजी परिवार का अनुशासन मिला साथ ही समाजसेवा की प्रेरणा भी मिली। बचपन से ही संघर्ष और जीवन साथ साथ चला। क़ॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर घर में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। दूसरों को ट्यूशन भी पढ़ाया और अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। पढ़ाई पूरी होते ही विवाह कर दिया गया, और यहां से जीवन का नया पड़ाव और जीवन की परीक्षा दोनों शुरू हो गईं।
ससुराल में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन रीना ने सभी के साथ मिलजुल कर चलना जीवन का लक्ष्य बना दिया। कई सालों तक संघर्ष करते हुए अपने परिवार की सेवा की लेकिन जब खुद उन्हें मदद की जरूरत पड़ी तो कोई आगे नहीं आया। तभी रीना ने तय कर लिया कि वो खुद अपने पैरों पर खड़ी होकर अपनी अलग पहचान बनाएंगी।
बच्चे छोटे थे लेकिन रीना ने काम करना शुरू कर दिया। अपने घर के आस-पास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया साथ ही लोगों के लिए खाने के टिफिन भी बनाने शुरू कर दिए। थोड़ा पैसे बचे तो दुकान खोली जिसमें साल 2015 में सिलाई और ब्यूटी पार्लर का काम खोला। ससुराल से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली फिर भी हौसला बरकरार रखा।
रीना की दुकान चल पड़ी थी लेकिन जीवन को कुछ और ही रुख लेना था। सामाजिक कार्यों का जो बीज पहले पिता ने बोया था उसे पति ने पल्लवित पुष्पित किया। इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए साल 2021 में देवभूमि मां गंगे ट्रस्ट की स्थापनी की। अपने साथ दूसरे लोगों को जोड़ा और समाजसेवा का काम शुरू कर दिया। पति के साथ साथ दूसरे सहयोगियों ने जब रीना की लगन देखी तो वो भी साथ में काम करने लगे।
तभी देश में लंबी वायरस का कहर बरपा और देखते ही देखते गौशाला में खड़ी गाएं इसकी चपेट में आने लगीं। सैकड़ों गायों की दुर्दशा होने लगी। एक तरफ सड़कों पर बीमार गाए मदद के लिए कराह रहीं थी तो दूसरी तरफ बीमारी के डर से कोई उनके पास तक जाने को तैयार नहीं था। रीना से ये सब देखा नहीं गया। उन्होंने ऋषिकेश ढलवाला में काम कर रहे गौ सेवों के बात की लेकिन कोई आगे नहीं आया। सब टालने लगे, कोई बीमार गायों को छूना तक नहीं चाहता था। रीना का निश्चय पक्का था, तभी उनके पति ने सलाह दी कि स्थानीय पशु चिकित्सक से मिलकर इस बारे में बात की जाए। कैलाश गेट मुनि की रेती स्थित चिकित्साधिकारी रीना की पहल पर बेहद खुश हुए मदद के लिए तैयार हो गए। कागज़ी कार्यवाही आगे बढ़ी तो नगरपालिका भी मदद के लिए साथ आ गई। फार्मसिस्ट के पास जितनी भी दवाईयां थीं वो भी लेकर साथ चल पड़े।
प्रशासनिक अधिकारी तनवीर सिंह मारवाह ने 20 दिन के लिए चार लोगों का इंतज़ाम कर दिया। टीम बन चुकी थी, और सबका हौसला बुलंद था। जहां भी गाय दिखती उसका वहीं पर उपचार शुरू हो जाता। कई बार ऐसी जगहों पर जाना पड़ा जहां बहुत गंदगी थी, लेकिन टीम ने मुड़कर नहीं देखा। इसी मुहिम का नतीजा ये निकला की ऋषिकेश और आसपास की करीब 250 गायों का जीवन इस प्राणघातक बीमारी से बच गया।
इस दौरान आर्थिक समस्या भी आई लेकिन रीना और उनके पति ने किसी से मदद नहीं ली। इसका नतीजा ये हुआ कि जारी जमा पूंजी गौ माता की सेवा में खर्च हो गई, लेकिन रीना और उनकी टीम को तो संतोष प्राप्त हुआ उसके आगे सारे रुपये पैसे व्यर्थ थे।
आज रीना ने अपने ट्रस्ट को आगे बढ़ाया है। हर रोज महिलाओं को खुद के रोज़गार के काबिल बना रही हैं। अब तक करीब 100 महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं, औप हर रोज नए लोग जुड़ते जा रहे हैं।
रीना उनियाल मिसाल है पूरे देश के लिए। उन्होंने अपने संघर्ष को अपनी ताकत बनाया और आज सैकड़ों महिलाओं की ताकत बन गई हैं।