भारत के पहले PM जो आदि कैलाश का करेंगे दौरा ,देंगे य़ह संदेश…

Spread the love

75 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब भारत के कोई प्रधानमंत्री चीन और नेपाल सीमा के निकट स्थित आदि कैलाश और नारायण आश्रम के दौरे पर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि तीन देशों की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगी इस भूमि से प्रधानमंत्री पड़ोसी दो देशों के साथ ही पूरे विश्व को अध्यात्म और वैश्विक क्षेत्र में उभरती भारत की शक्ति का संदेश देंगे।


 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 11-12 अक्तूबर को पिथौरागढ़ जिले के आदि कैलाश और नारायण आश्रम का दौरा प्रस्तावित है। भारत का यह क्षेत्र तिब्बत (अब चीन) और नेपाल की सीमाओं से सटा है। धारचूला की व्यास घाटी से तिब्बत तक आध्यात्मिक भूमि रही है। तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर हिंदुओं का प्रमुख धार्मिक स्थल है। 16730 फुट पर स्थित लिपुलेख दर्रे से 1962 तक बेरोकटोक श्रद्धालु शिव के इस धाम की यात्रा करते थे। इसी दर्रे से दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियां भी होती थीं।

2020 से बंद हैं मानसोरवर यात्रा और व्यापार

1962 में भारत-चीन के युद्ध के बाद यात्रा और व्यापार दोनों बंद हो गए। इसके बाद वर्ष 1981 में यात्रा शुरू हुई लेकिन यात्रियों के लिए वीजा जरूरी कर दिया गया। वर्ष 2020 में कोरोना और अरुणाचल में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की कोशिशों के बाद रिश्तों में तल्खी आने के कारण कैलाश मानसरोवर यात्रा और व्यापार दोनों बंद हैं।


तकलाकोट और गुंजी हैं भारत-चीन व्यापार की प्रमुख मंडी

17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रे से होने वाले भारत-चीन व्यापार की प्रमुख मंडी पिथौरागढ़ जिले का गुंजी और तिब्बत में तकलाकोट हैं। दोनों मंडियों में दोनों देशों के व्यापारी कारोबार कर सकते हैं। बावजूद इसके भारतीय कारोबारी तो तकलाकोट जाते हैं, लेकिन चीन के व्यापारी गुंजी आने से कतराते हैं। इतना ही नहीं वर्ष 2016 के बाद इस व्यापार में आयात और निर्यात में कमी आई है। वर्तमान में यह व्यापार घटकर आधे से भी कम रह गया है। आयात लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन निर्यात में काफी कमी आई है।


वर्ष 1962 में बंद हो गया था व्यापार

भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों के बीच व्यापार की परंपरा सदियों पुरानी हैं। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापार बंद हो गया था। 1992 में करीब 32 साल बाद दोनों देशों की सहमति से इसे फिर से शुरू किया गया। व्यापार के लिए एक जून से 30 सितंबर की तिथि तय है। हालांकि कई बार इसे बढ़ाकर 31 अक्तूबर कर दिया जाता है। व्यापार के दौरान सहायक ट्रेड अधिकारी गुंजी में कार्य करते हैं। शेष अवधि में धारचूला में कार्य चलता है। व्यापार संचालन के लिए कालापानी में कस्टम चौकी और गुंजी में स्टेट बैंक की शाखा भी खोली जाती है।


अब 22 दिन में पूरी होती है मानसरोवर यात्रा

वर्ष 1962 से पहले कैलाश मानसरोवर यात्रा कई माह में पूरी हुआ करती थी। भारत-चीन-युद्ध के बाद 19 साल तक कैलाश मानसरोवर यात्रा बाधित रही। 1981 में ही यह यात्रा फिर शुरू तो हुई लेकिन कई प्रतिबंध लग गए। अब यात्रा अधिकतम 22 दिन में पूरी होती है। वर्ष 1962 से पहले कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए किसी तरह की अनुमति की जरूरत नहीं थी। तब नेपाल की ब्रह्मदेव मंडी से टनकपुर, गंगोलीहाट, थल, डीडीहाट, अस्कोट, नारायण आश्रम होते हुए लोग कैलाश मानसरोवर की पैदल यात्रा पर जाते थे।


दो बार रद्द हो चुकी है यात्रा

नेपाल के साथ भारत के रोटी-बेटी के रिश्ते जरूर हैं लेकिन जिस तरह से नेपाल ने हाल के वर्षों में भारत के कालापानी और लिंपियाधूरा को अपने नक्शे में शामिल किया है उससे संबंद में खटास आई है। भारत के साथ रोटी-बेटी के रिश्तों के दावों के बीच नेपाल, चीन को अपना सच्चा हितैषी बताता आ रहा है।


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *