देहरादून. उत्तराखंड में भू-अध्यादेश की मांग सोशल मीडिया पर तो ट्रेंड कर ही रही थी अब राजनीतिक गलियारों में इसकी फुसफुसाहट होने लगी है। कम ही नेता हैं जो इस वक्त भू-कानून की मांग पर खुलकर अपनी राय रख रहे हैं लेकिन जो चुप हैं वो ये जानते हैं कि देर सबेर उन्हें इसपर बात करनी ही पड़ेगी। उत्तराखंड के युवाओं का जो आक्रोश इस वक्त सोशल मीडिया पर उमड़ रहा है वो अगर सड़कों पर दिखा तो सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है। भू अध्यादेश आंदोलन को लेकर हर रोज़ हज़ारों ट्वीट किए जा रहे हैं, मुहिम रोज़ तेज़ी से बढ़ रही है इसलिए ये जानना ज़रूरी है कि आखिर भू अध्यादेश क्या है?
भू अध्यादेश आंदोलन के ज़रिए ये मांग की जा रही है कि पर्वतीय क्षेत्रों में बाहरी लोगों के द्वारा ज़मीन की बेहिसाब खरीद और बिक्री पर रोक लगे। इसके पीछे सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान लुप्त होने के साथ साथ पर्यावरण को होने वाले नुकसान गिनाए जा रहे हैं। सवाल ये है कि आखिर ये मांग क्यों उठ रही है, और अभी क्या स्थिति है। इसके लिए
पहले ये समझिए कि उत्तराखंड में बाहरी व्यक्तियों के लिए ज़मीन खरीद की व्यवस्था क्या है?
साल 2002 में नियम बना कि कोई भी बाहरी व्यक्ति उत्तराखंड में केवल 500 वर्ग मीटर ज़मीन ही खरीद सकता है, उसके बाद 2007 में इस नियम को और कठोर बनाया गया और तय किया गया कि कोई भी बाहरी व्यक्ति केवल 250 वर्ग मीटर ज़मीन ही खरीद सकता है। लेकिन भू माफियाओं के लिए सरकार ने दूसरे दरवाज़े खोल दिए। सरकार ने नियम बनाया कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कोई भी बाहरी व्यक्ति उद्योग धंधे के नाम पर कितनी ही ज़मीन खरीद सकता है, उसके लिए कोई रोकटोक नहीं होगी। इतना ही नहीं अगर उद्योग के नाम पर कोई ज़मीन खरीदता है तो उसका लैंड यूज़ बदलवाने के लिए कोई प्रक्रिया नहीं होगी, इसका मतलब ये हुआ कि जैसे ही ज़मीन उद्योग के नाम पर खरीदी जाएगी उसका लैंड यूज़ खुद ब खुद बदल जाएगा। इस तरह से उत्तराखंड के पहाड़ों में बेहिसाब ज़मीन लेने का रास्ता साफ हो गया।
अब हिमाचल प्रदेश में क्या नियम है ये भी देख लीजिए
हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड का पड़ोसी राज्य है, वहां ज़मीन खरीद फरोख्त के नियम इतने सख्त हैं कि वहां बेहिसाब कृषि ज़मीन खरीदना लगभग नामुमकिन है। हिमाचल प्रदेश के कानूनों के मुताबिक कोई भी ऐसी ज़मीन जिस पर कृषि से जुड़ा कोई भी कार्य हो रहा है उसे गैर कृषि के काम के लिए नहीं बेचा जा सकता। ये नियम इतना सख्त है कि अगर किसी ने धोखे से ज़मीन बेच भी दी और जांच में दोष सिद्ध हुआ तो सारी ज़मीन सरकार की हो जाएगी। ऐसा नहीं कि आप हिमाचल में ज़मीन नहीं खरीद सकते लेकिन वहां पर भूमि खरीदने की सीमा निर्धारित है। जो व्यक्ति किसान नहीं है वो ज़मीन नहीं खरीद सकता,अगर किसी ऐसे शख्स को ज़मीन खरीदनी है जो किसान नहीं है तो उसे सरकार से इजाज़त लेनी होगी। इसके अलावा हिमाचल में बाहरी राज्यों से आकर नौकरी कर रहे सरकारी अधिकारी आर कर्मचारी अपने बच्चों के नाम पर जमीन नहीं खरीद सकेंगे। हिमाचल में वही शख्स ज़मीन खरीद सकता है जो बोनाफाइड हिमाचली हो या फिर कम से कम तीस साल हिमाचल में रह चुका हो।
इन राज्यों में भी भू-कानून
ऐसे सख्त नियम केवल हिमाचल जैसे राज्य में ही नहीं हैं बल्कि सिक्किम में भी कानून बेहद कड़े हैं। सिक्किम के नियमों के मुताबिक लिम्बू या तमांग समुदाय के लोग अपनी जमीन किसी दूसरे समुदाय को नहीं बेच सकते। ये लोग अगर ज़मीन बेचना भी चाहें तो उन्हें अपने ही समुदाय से कोई ग्राहक खरीदना होगा। वही शख्स ज़मीन बेच सकेगा जिसके पास कम से कम तीन एकड़ अपने पास रखने के लिए हो। सिक्किम में ओबीसी तभी ज़मीन बेच सकते हैं जब उनके पास 10 एकड़ खुद के पास रखने के लिए हो।
(साभार- दिनेश काण्डपाल, वरिष्ठ पत्रकार)